भजन: श्याम सुंदर मनहोर वरण
श्याम सुन्दर मनोहर वरण
हे गोपाल मदन मोहन
श्री राधा वर हे मुरली धर
हे गोपाल मदन मोहन
तिरछा है किरीट कसा उर में
तिरछा बनमाल पड़ा रहता है
तिरछी कटि काचिनी है जिसमें
सुख सिन्धु सदा उमड़ा रहता है
तिरछे ही कदम के वृक्ष तले
तिरछे दृगतान खड़ा रहता है
किस भाटी निकले कहो दिल से
तिरछा घनश्याम अड़ा रहता है