Shakti Upasana Ka Parv Navratre

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Shakti Upasana Ka Parv Navratre
Shakti Upasana Ka Parv Navratre

शक्ति उपासना का पर्व नवरात्र

देवी उपासना का विधान

नवरात्र का समय परिवर्तन का ऐसा समय होता है जिसमें शरीर-मन की बढ़ी संवेदनशीलता को मर्यादित जीवन और साधना द्वारा हम आत्म विकास में नियोजित कर सकते हैं। नवरात्रि के नौ दिन जीवन साधने की कला के दिन हैं ताकि जीवन सार्थक हो सके। नवरात्रि में भगवती दुर्गा की विधिवत् पूजा करने वाले व्यक्ति की कामनाएं शीघ्र पूरी होती हैं।वर्ष भर में दो प्रमुख गुप्त और दो प्रकट नवरात्रि का उल्लेख है।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवमी पर्यंत।
आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा से नवमी पर्यंत।
आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी पर्यंत।
माघ शुक्ल प्रतिपदा से नवमी पर्यंत।

इनमें से चैत्र व आश्विन के महीने की नवरात्र की विशेष महिमा बताई गई है। नवरात्र का रात्रि से कोई संम्बंध नहीं है। नवरात्रि से नौ तिथियों में भगवती का समन्वित उपासनापरक अर्थ ग्रहण किया जाता है। उपासना हेतु प्रतिपदा के दिन मंडप आदि तैयार कर स्थापना करनी चाहिए। दक्षिणमुखी शुभत्व, पूर्वाभिमुखी विजय व पश्चिमाभिमुखी प्रतिमा कामना सिद्धि वाली होती है। जबकि उत्तराभिमुखी प्रतिमा से शुभत्व का नाश होता है। अत: उत्तराभिमुखी प्रतिमा कभी न रखें। प्रतिमा के अभाव में ‘ओउम् ऐं ह्वीं क्लीं चामुण्डाये विच्चे’ इस मंत्र को शास्त्र विहित धातु में खुदवाकर यंत्र बनाएं तथा उसी की विधिवत् पूजा करें।

भगवती दुर्गा की पूजा वैदिक काल से चली आ रही है। विभिन्न युगों में विविध रूपों को धारण करने वाली भगवती दुर्गा के अवतरण का मुख्य उद्देश्य समाज व राष्ट्र को अव्यवस्थित करने वाली आसुरी शक्तियों का दमन कर प्रजा के हृदय में शम, दम, दया, शुचिता, धैर्य, विद्या, बुद्धि, क्षमा और अक्रोध रूपी धर्म को धारण कराना है। वे प्रसन्न हों तो समस्त दुर्गतियां टल जाती हैं। यद्यपि भारत में अनेक देवताओं की उपासना की जाती है किंतु कलियुग में भगवती दुर्गा या चंडी कहें व श्रीगणेश की उपासना शीघ्र फलदायी होने के कारण बहुधा प्रचलित है। कहा भी गया है-’कलौ चण्डी विनायकौ।’ कलिकाल के आरंभ से पहले ,द्वापर के अंत में ही भगवती योगमाया दुष्ट कंस के हाथोंसे छूटकर भगवान की सहायता हेतु और कलिकाल में भक्तों पर अनुग्रह करने के लिए विविध रूपों व नामों को धारण कर स्थान-स्थान पर विराजित हो गईं-श्रीमद्भागवत् के खण्ड 10/4/13 में वर्णित है

इति प्रभाष्य तं देवी माया भगवती भुवि।
बहुनामानिकेतेषु बहुनामा बभूव ह।।

तात्पर्य यह कि एक दुर्गा के पूजन से ही सभी देवताओं के पूजन की सिद्धि तथा मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। कारण वही परमात्म शक्ति है। देवी उपनिषद में देवताओं ने अतुल तेजस्विनी भगवती को देखकर आश्चर्य से पूछा कि -’ का असि त्वं’ अर्थात तुम कौन हो! तब देवी ने कहा कि

अहं ब्रह्म स्वरूपिणी। विज्ञानाविज्ञानेहम्।

मैं ही ब्रह्म स्वरूपिणी हूं, मैं ही विज्ञान और अविज्ञान हूं। कूर्म पुराण के अनुसार जिसके द्वारा यह सृष्टि चक्र निरंतर चलता है, संपूर्ण विश्व जिसके प्रकाश से प्रकाशित हो रहा है, वह एक जगन्मयी भगवती दुर्गा ही हैं। यही दुर्गा विविध नामों और रूपों में भक्तों का कल्याण करने व उन पर अनुग्रह करने के लिए साक्षात् विराजित हैं।

जय माँ जगदम्बा
सच्ची ज्योता वाली माता तेरी सदा ही जय
बोल साँचे दरबार की जय
जय माता की
जय जय श्री राधे।
श्री राधा- कृष्ण की कृपा से आपका दिन मंगलमय हो ।
श्री कृष्ण शरणम ममः

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