सदना कसाई और भगवान् शालिग्राम
काशी के एक वेदपाठी सदाचारी ब्राह्मण देवता से गोमाता के प्रति एक अपराध होगया। एक गाय भागती हुई उनके पास से गुजर गई उतने ही में एक आदमी भी उसके पीछे भागता हुआ आया, उसने पूछा – क्यों पण्डित जी ! इस गली से कोई गाय अभी – अभी गयी है क्या ? पण्डित जी ने अपने हाथ से संकेत कर दिया। उस रास्ते पर जा कर उस आदमी ने उस गाय को पकड़ लिया और गाय का वध कर दिया। वह आदमी नर पिचाश यानि कसाई था जो गौ हत्या में रत अपनी जीविका चलाता था। इस पाप के कारण वेद पाठी ब्राह्मण को अगले जन्म में कसाई के घर जन्म लेना पड़ा, नाम पड़ा सदना। पर पूर्व जन्म के वेद पठन और पुण्य कर्मो के कारण वह कसाई भी उदार, दयावान, सदाचारी था। अतः कुलाचार का पालन करते हुए मांस तो बेचता था पर किसी भी जीव की हिंसा नहीं करता था। पूर्व जन्म में सेव्य ठाकुर जी की कृपा उन पर बनी हुई थी, इसलिए उसकी भगवत भजन में बड़ी निष्ठा थी ।
एक दिन सदना एक नदी के किनारे से जा रहा था, तभी रास्ते में उसे एक पत्थर पड़ा मिल गया ! उसे पत्थर अच्छा लगा, उसने सोचा की बड़ा ही अच्छा पत्थर है तो क्यों ना मै इसे मांस तौलने के लिए उपयोग करूं ? किन्तु वह नहीं जनता था कि वह कोई साधारण पत्थर नहीं था, बल्कि भगवान का ही रूप शालिग्राम भगवान थे जिनका पूर्व जन्म में वह ब्राह्मण देवता नित्य पूजन गोदुग्दाभिसेक आदि किया करते थे। । भाग्य बलवती था इसलिए वह वही शालिग्राम भगवान को ले आया था, अब सदना कसाई ने पूर्व जन्म के उन शालिग्राम भगवान को इस जन्म में बाँट के रूप में प्रयोग करना आरम्भ कर दिया और भगवान के सुन्दर दिव्य नामो का संकीर्तन करता रहता भगवान शालिग्राम जी को सदन का प्रेम पूर्वक संकीर्तन सुनने का लोभ रहता इसलिये वे पलड़े पर झूलते रहते।
अब शालिग्राम भगवान मांस तौलने में प्रयोग आने लगे। जब सदना एक किलो मांस तौलता तो भी सही तुल जाता, जब दो किलो तौलता तब भी सही तुल जाता, इस प्रकार सदना चाहे जितना भी मांस तौलता , हर भार एक दम सही तुल जाता, अब तो वह एक ही पत्थर से सभी माप करता और अपने काम को करता जाता और भगवन नाम का संकीर्तन करते रहता। एक दिन की बात है , उसकी दुकान के सामने से एक ब्राह्मण निकले ! ब्राह्मण बड़े ज्ञानी विद्वान थे, उनकी नजर जब उस पत्थर पर पड़ी तो वे तुरंत सदना के पास आये और गुस्से में बोले – ये तुम क्या कर रहे हो ? क्या तुम जानते नहीं की जिसे पत्थर समझकर तुम मांस तौलने में प्रयोग कर रहे हो वे शालिग्राम भगवान हैं, इन्हें मुझे दे दो ! मैं इनकी नित्य पूजा पाठ करूँगा और इस तरह तुम्हारे किये पापो से भगवान तुम्हे भी मुक्त कर देंगे।
जब सदना ने यह सुना तो उसे बड़ा दुःख हुआ और वह बोला – हे ब्राह्मण देव, मुझे पता नहीं था कि ये भगवान शालिग्राम हैं, मुझे क्षमा कर दीजिये ! और सदना ने शालिग्राम भगवान को ब्राह्मण को दे दिया। ब्राह्मण शालिग्राम भगवान शिला को लेकर अपने घर आ गए और गंगा जल से उन्हें नहलाकर, मखमल के बिस्तर पर, सिंहासन पर बैठा दिया, और धूप, दीप,चन्दन से पूजा की। ब्राह्मण देवता को अहंकार हो गया जिन शालिग्राम ने करोडो पतितो का उद्दार किया आज मुझे उनका उद्दार करने का सौभाग्य प्राप्त होगया है। यही सोच जब वह सोये तो सपने में भगवान आये और बोले ! ब्राह्मण देवता मुझे तुम जहाँ से लाए हो वहीँ छोड आओं, मुझे यहाँ अच्छा नहीं लग रहा।
मेरा भक्त सदन कसाई जो संकीर्तन मुझे सुना कर रिझाता था वह बात तुम्हारे मंत्रो में भी नहीं। इस पर ब्राह्मण बोला ! भगवान ! वो कसाई तो आपको तुला में रखता था और दूसरी ओर मांस तौलता था उस अपवित्र जगह में आप थे, भगवान बोले ! ब्राहमण आप नहीं जानते जब सदना मुझे तराजू में तौलता था तो मानो हर पल मुझे अपने हाथो से झूला – झूला रहा हो, जब वह अपना काम करता था तो हर पल मेरे नाम का उच्चारण करता था।
हर पल मेरा भजन करता था इसलिए जो आनन्द मुझे वहाँ मिलता था, वो आनंद यहाँ नही। शालिग्राम भगवान बोले हां ब्राह्मण देवता मैं आपकी निष्ठा से प्रसन्न जरूर हु पर जो समर्पण सदन में है वह तुम में नहीं, इसलिए तुम मुझे वही छोड आओ। ब्राह्मण देवता भगवान शालिग्राम को ले कर वापस सदना कसाई की दुकान पर पहुचे और बोले भैय्या ! सदन ये भक्त वत्सल भगवान तो तुमसे ही प्रसन्न है। मेरी सात्विक पूजा भी इनको नहीं भाई। पर एक बात तुम याद रखना ये शालिग्राम भगवान का स्वरुप है। इन्हें पूजना चाहिए न कि बाँट बनाना चाहिए। वैसे तुमको इस पाप का प्रायश्चित करना चाहिए। ब्राहमण देवता के वचनों को सुनकर श्रद्धावान प्रेमी भगत सदन कसाई अपने अनजाने के अपराध को स्मरण कर दुखी हो गया।
उसने इस (अपराध ) पाप के प्राश्चित के लिए पतित पावन भगवान जगन्नाथ की यात्रा कर उनके दर्शन कर शरण में जा क्षमा मांगने का मन बना लिया। दूसरे ही दिन दुकान बंद कर जगन्नाथ भगवान के दर्शन को जा रहे एक तीर्थ यात्री दल के साथ चल पड़ा कलयुग के पापो को क्षय करने वाले साक्षात् भगवान के धाम जगाद्नाथ पूरी की ओर। पर जैसे ही तीर्थ यात्रियों के साथ सदन आगे बड़ता है अपनी सत्यवादिता की वजह से तीर्थ – यात्री परख लेते है की यह एक कसाई है।
उसे भी आभास हो गया की यात्री कसाई जानकर उससे दूरी बना रहे है और परहेज कर रहे है पानी आदि को छूने पर सदन को लगा मेरा इन यात्रियों के साथ जाना ठीक नहीं, अतः सदन उनका साथ छोड़ गले में शालिग्राम जी वाली झोली लटकाकरअकेले ही चल दिया। संकीर्तन करता हुआ नाचता-गाता मस्ती में, दुनिया वालो के लिए अकेले, पर शालिग्राम भगवान ने उसे कभी अकेले नहीं छोड़ा वे पल – पल उस अज्ञानी भक्त की प्रत्येक क्रिया पर दृष्टि गडाए हुए थे।
मार्ग में एक गावं आया एक कुऎ पर वह पानी पीने ठहर गया। उस कुऎ पर पहले से ही एक सुन्दर नारी पानी भर रही थी । उस स्त्री ने सदन का सुन्दर लावण्य, गौ वर्ण, सुगठित शरीर, मधुर वचन, विशाल नेत्र, मधुर मंद मुस्कान आदि देखकर मोहित शब्दों में कहा आप जल तो पी लीजिये पर अब शाम बहुत हो गई है पास में मेरा घर है आप थके है रात्रि विश्राम करके भोर में आप फिर यात्रा प्रारम्भ कीजियेगा। भोला भगत सदन प्रेम में सने बातो में उस स्त्री का निवेदन स्वीकार कर लिया और भगवान शालिग्राम को भी कुऎ के जल से नहला कर उस स्त्री के घर पहुच गया। रात्रि में वह स्त्री अपने पति के सो जाने पर सदन जी के पास पहुच गई और अपना अभिप्राय बताया।
उसकी विषयासक्ति भरी कुत्सित भावना जानकर सदन चौक गये।उस स्त्री ने फिर कहा मेरे घर में बहुत धन है। मैं स्वर्ण आभूषण लेकर तुम्हारे साथ चलने को तैयार हूँ। सदन ने कहा यह ठीक नहीं आपके पति तो है आप अपना मनोरथ उनसे ही सिद्द करे। उस विषयासक्त स्त्री ने समझा कि सदन उसके पति को बाधक समझ रहे है। वह गई अपने सोते हुए पति की गला रेत कर हत्या कर आ गई। यह सब देख सदन जी हक्के – बक्के से रह गए। भयभीत हो गये वह सदन के भाव को ताड गई और त्रिया चरित्र करके जोर – जोर से चिल्लाने – चीखने रोने लगी – हाय ! इस यात्री को मैंने घर में ठहरने की जगह दी, इसने मेरे घर में चोरी कर धन चुराया और विरोध करने पर मेरे पति का गला रेत दिया। पास – पड़ोस के लोग इकट्ठे हो गये। सदन को पकड़ लिय।
राजा के समीप ले गये। राजा ने सदन को देखा तो उसके चेहरे से मुखाकृति से हत्यारे का भाव कही था ही नहीं । राजा ने सदन से पूछा – क्या तुमने इसके पति की हत्या की है ? सदन जी मौन हो गये। राजा चिन्ता में पड़ गया। इधर अत्यंत सीधे भोले भक्त सदन ने सोचा की यदि मैं इसके घर नहीं आता तो यह घटना घटित ही नहीं होती। अपराध के मूल में तो मैं ही हूँ। अतः वे मौन रह गये। अनुभवी राजा ने मंत्रियों से परामर्श किया कि यह अपराधी नहीं लगता पर पता नहीं क्यों मौन रहकर स्वीकृति दे रहा है। मैं ह्रदय से इसे अपराधी नहीं मान पा रहा हूँ इसे क्या दंड दिया जाय आप ही बताएं।
मंत्रियों ने कहा यदि वह स्वयं प्रतिवाद नहीं करता तो दण्ड तो अनिवार्य है, प्रजा में गलत सन्देश चला जायेगा, की अपराधी को दंड नहीं मिला आगे और अपराध बढ़ेंगे। पर इसे आप मृत्यु दण्ड ना देकर इसके वह हाथ काट डालने का आदेश दीजिये जो हाथो से इसने उस स्त्री के पति की गर्दन कट डाली । अगले दिन भरी सभा में सदन का दाया हाथ काट दिया गया। सदन ने अपने पूर्वकृत पापों का परिणाम मानकर हाथ कट जाने पर कोई दुःख नहीं किया।
अपनी भगवान जगाद्नाथ पूरी की यात्रा पुनः प्रारम्भ की। जब जगाद्न्नाथपूरी के निकट पहुचें तो भगवान जगाद्न्नाथ जी ने अपने सेवक वहां के राजा को आज्ञा दी कि मेरे परम प्रिय भक्त सदन कसाई को सम्मानपूर्वक अगवानी कर गाजे – बाजे के साथ पालकी में बैठकर मेरे पास लाओ। श्री जगाद्न्नाथ जी की आज्ञा मानकर राजा पालकी, गाजे – बाजे, स्वागत सामग्री लेकर पहुचं गया। पर सदन जी इस सम्मान को स्वीकार नहीं कर रहे थे। तब स्वयंग श्री जगद्न्नाथ जी ने आकर दर्शन देकर कहा – मेरे प्यारे भक्त ! तुम पूर्व जन्म में सदाचारी नैष्ठिक ब्राहमण थे।पर सत्य संभाषण के पुण्य के लोभ से तुमने वाणी से न बताकर हाथो से संकेत किया कि गाय उस गली में गई है उस कारण उस कसाई ने गाय को पकड़ लिया और उसका गला रेत हत्या कर दी। भगवान जगद्न्नाथ बोले गौ संगरक्षण परम धर्म है। इसकी तुलना में सत्य भाषण आदि सामान्य धर्म की श्रेणी में आते है।
जिसको तुमने दाये हाथ से कसाई को निर्देशित किया था वही गाय वह स्त्री बनी है जिसके झूठे आरोपों से तुम्हारा हाथ काटा गया। उस स्त्री का पति पूर्व जन्म का कसाई बना था जिसका बध कर पूर्व जन्म की गाय ने बदला लिया है। भगवान श्री जगद्न्नाथ जी बोले सदन प्यारे मनुष्य को अपने संचित शुभाशुभ कर्मो के फल अवश्य मिलते है, इसलिए तो मेरेअभिन्न अंग ब्रह्मा जी ने 84 लाख योनियो की रचना की है। अब तुम निष्पाप हो गये हो यदि इस पूर्व पाप का सम्मार्जन फल भोग के रूप में न होता तो तुम्हें ऎसा दर्शन सुलभ न होता।
यह तुम्हारे शालिग्राम जी जो तुम्हारे पास बटखरे बन कर रहे, तुम्हारे द्वारा अनेक जन्मो से सेवित है। प्रेम सहित सेवित भगवान अपने भक्त का प्रेम निर्वाह कर पुनः जाकर सेवा स्वीकार करते है।इसप्रकार भगवान जगद्न्नाथ ने सांत्वनापूर्वक उद्द्बोधन कर पालकी में बैठ कर चलने की आज्ञा दी। जगद्न्नाथ जी की आज्ञा पालन के लिये सदन जी ने पालकी में बैठना स्वीकार किया। सभी भक्तो के साथ कलि पाप विनाशक परम पावन श्री जगद्न्नाथ भगवान के दर्शन किये।
श्री जगद्न्नाथ भगवान जय
बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय ।
जय जय श्री राधे।
श्री राधा- कृष्ण की कृपा से आपका दिन मंगलमय हो ।
श्री कृष्ण शरणम ममः