श्रीराधा विजयते नमः

पायो बड़े भाग्यन सों आसरो किशोरी जू कौ,
ओर निरवाहि ताहि नीके गहि गहिरे ।
नैननि सौं निरखि लड़ैती जू को वदन चन्द्र,
ताही के चकोर ह्वैके रूपसुधा चहिरे ॥
स्वामिनी की कृपासों आधीन हुयी हैं ‘ब्रजनिधि’,
ताते रसनासों सदां श्यामा नाम कहिरे ॥
मन मेरे मीत जोपै कह्यो माने मेरो तौं,
राधा पद कंज कौ भ्रमर है के रहिरे ॥

अर्थात:-

हे मेरे मन, यह अत्यंत सौभाग्य कि बात है की तुमने श्री किशोरी जी की शरण ली। तो अब उस प्रतिज्ञा पर खरा उतरो और इस समर्पण के मूल्यों को गहराई से समझो।
हमेशा एक चकोर पक्षी की तरह श्री किशोरीजू के चाँद से चेहरे पर टकटकी लगाए रहो, और इसके सिवा कोई भी इच्छा न करना, केवल श्रीजी की रूप माधुरी का ही पान करो।
इन ब्रज की महारानी, श्री राधारानी की कृपा से ही आप उनपर निर्भर हो गए हैं, और यहां तक कि भगवान कृष्ण भी हमेशा उनका अनुसरण करते हैं। इसलिए हमेशा उनका नाम “श्यामा” रटते रहो।
श्री ब्रजवासी जी कहते हैं, हे प्रिय मन, मेरे प्रिय मित्र, अगर तुम मेरी बात मानो तो मैं तुमसे यही कहता हूँ कि श्री किशोरी जु के चरण कमल के मधुर रस पर भंवर की भांति नित्य मंडराते रहो।