Palaniandavar Teerth

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Lord Murugan
Lord Murugan

पलनी अंदावर तीर्थ

पलनी शैवभक्तों का महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल दक्षिण भारत के प्रमुख आराध्यदेव हैं कार्तिकेय शैव भक्तों के लिए पलनी अंदावर तीर्थ का उतना ही महत्व है, जितना वैष्णव भक्तों के लिए तिरुपति बालाजी का. पलनी में शिवपुत्र भगवान कार्तिकेय की पूजा-अर्चना की जाती है. भगवान कार्तिकेय दक्षिण भारत के प्रमुख आराध्यदेव हैं. यहां इन्हें कई नामों से जाना जाता है- स्कंद, मुरुगन, सुब्रमण्य आदि. यहां इन्हें पहाड़ों का देवता भी कहा जाता है. शिवगिरि पहाड़ी के मध्य अवस्थित होने के कारण “पलनी” को यह उपाधि मिली है.

“स्कन्द पुराण” भगवान कार्तिकेय को समर्पित

अठारह महापुराणों में से ‘स्कन्द पुराण’ भगवान कार्तिकेय को समर्पित है. कार्तिकेय दक्षिण भारत में आकर क्यों बसे? इसका भी वर्णन स्कन्द पुराण में मिलता है. मान्यता है कि कैलाश पर्वत पर भगवान शंकर से मिलने देवर्षि नारद पधारे. मिलने के बाद नारद जी ने उन्हें ज्ञानफल दिया. ज्ञानफल को प्राप्त करने के लिए गणोश जी एवं कार्तिकेय जी दोनों लालायित हो उठे. तब, भगवान शिव ने अपने दोनों पुत्रों को ब्रह्माण्ड की परिक्रमा लगाकर आने के लिए कहा.

जो पहले ब्रह्माण्ड की परिक्रमा लगाकर आएगा, उसे वह ज्ञानफल दिया जाएगा. कार्तिकेय बिना विलम्ब के अपने वाहन मयूर पर बैठकर ब्रह्माण्ड परिक्रमा के लिए निकल गये, जबकि गणोश अपने वाहन मूषक पर बैठकर अपने माता-पिता अर्थात पार्वती जी एवं शिव जी की परिक्रमा यह कहते हुए करने लगे कि आपसे ही ब्रह्माण्ड हैं, तो आपकी परिक्रमा करना ब्रह्माण्ड की परिक्रमा है. इस पर प्रसन्न होकर शिव जी ने देवर्षि नारद द्वारा प्रदत्त ज्ञानफल गणोश जी को प्रदान कर दिया.

भगवान शिव ने कार्तिकेय को “पलनी” कहा

जब, ब्रह्माण्ड परिक्रमा पर कार्तिकेय जी पहुंचे तो इस घटना से नाराज होकर कैलाश पर्वत त्याग कर दक्षिण दिशा की ओर चल दिये. वहां पहुंचकर कार्तिकेय जी ने शिवगिरि पर्वत को अपनी निवास बनाया. यहां पर कार्तिकेय ने वर्षों तक तपस्या की. मान्यता है कि कार्तिकेय को ब्रह्माण्ड के रहस्यों को बतलाने तथा उनकी अपनी क्षमता से परिचित कराने के लिए भगवान शिव आये और उन्हें ‘पलनी’ कहा. इसका अर्थ हुआ- ‘तुम तो स्वयं ज्ञानफल हो.’ इस प्रकार कार्तिकेय का एक नाम पलनी हो गया.

पलनी शैवभक्तों के लिए महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल

तब इनके नाम और महिमा की र्चचा पूरे दक्षिण भारत में फैल गयी और यह स्थान महान तीर्थ बन गया. इनके पलनी नाम पर पूरी पर्वतमाला पलनी पर्वतमाला कहलाने लगी और शिवगिरि पहाड़ी के आसपास बसा नगर भी पलनी नाम से विख्यात हो गया. वर्तमान में, पलनी शैवभक्तों के लिए महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है. लोग शिवगिरि पहाड़ी को पवित्र पहाड़ी के रूप में पूजते हैं. माना जाता है कि शिवगिरि पहाड़ी कभी कैलाश पर्वत के निकट स्थित थी.

एक समय अगस्त मुनि को भगवान शिव एवं देवी उमा ने शिवगिरि एवं शक्तिगिरि पर्वत पर बैठे हुए रूप में दर्शन दिया था. बाद में, अगस्त मुनि ने भगवान शिव से इन पहाड़ियों को दक्षिण में अपने निवास तक ले जाने की आज्ञा मांगी. आज्ञा मिल जाने पर अगस्त मुनि ने अपने शिष्ट असुर इंदुम्बन को उन पहाड़ियों को दक्षिण में लाने की आज्ञा दी. इंदुम्बन अपने गुरु की आज्ञा मानकर शहतीर में सर्प की मदद से कांवर का रूप देकर उन पहाड़ों को लेकर चल दिया.

कार्तिकेय में अपना निवास बनाया

भगवान के आशीर्वाद से जब वह कांवर को उठाता तो पहाड़ियों का वन काफी हल्का हो जाता और वह बड़े आराम से चलता. रास्ते में इंदुम्बन कई स्थानों पर रुककर विश्राम करता हुआ, आगे की ओर बढ़ता जा रहा था. इसी क्रम में एक दिन जब इंदुम्बन अपनी दिनभर की यात्रा के बाद रात्रि में विश्राम कर रहा था, तभी आकाश में विचर रहे कार्तिकेय जी का ध्यान इन दोनों सुंदर पहाड़ियों पर गया. कार्तिकेय इस पर इतना मोहित हो गये कि इसे अपना निवास स्थान बना लिया.

उधर, जब इंदुम्बन विश्राम कर आगे की यात्रा के लिए कांवर उठाने गया, तो कांवर काफी भारी हो गया और उससे हिला भी नहीं. वह परेशान हो इधर-उधर ऊपर-नीचे देखने लगा. तभी पहाड़ी पर बैठे कार्तिकेय पर उसकी नजर पड़ी. उस वक्त कार्तिकेय जी युवा संन्यासी का रूप धारण कर लिया था. जब इंदुम्बन अपनी यात्रा का प्रयोजन बताते हुए, उन्हें पहाड़ी के ऊपर से हटने को कहा, तब उन्होंने कहा, अब यह हमारा निवास स्थल बन गया है.

मनोकामनाएं होती हैं पूर्ण

इस इंदुम्बन क्रोधित होकर उन्हें युद्ध करने के लिए ललकारने लगा. दोनों में भयंकर युद्ध हुआ. इंदुम्बन हार गया. बाद में अगस्त मुनि वहां पहुंच कर इंदुम्बन से बोले कि यह कोई और नहीं, शिवजी के दूसरे पुत्र कार्तिकेय हैं. इंदुम्बन ने इतना सुनते ही उन्हें दण्डवत प्रणाम किया. उन्होंने इंदुम्बन को आशीर्वाद दिया और कहा कि जो भी व्यक्ति इस स्थान पर कांवर लेकर आएगा, उसे सभी मनोकामनाओं की प्राप्ति होगी. वर्तमान में, पलनी दक्षिण भारत के प्रमुख राज्य तमिलनाडु का पवित्र धार्मिक शहर है. यहां सुब्रमण्यम स्वामी अर्थात कार्तिकेय जी का भव्य और बहुत ही खूबसूरत मंदिर है. यह समुद्र तल से डेढ़ हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है.

मंदिर का स्थापत्य पांड्य शैली का है. इसका निर्माण 11वीं शताब्दी में शिवभक्त चेरमल पेरुमल ने करवाया था. मंदिर के चारों दिशाओं में एक-एक द्वार हैं. इन द्वारों पर छोटे-छोटे गोपुरम बने हुए हैं. मंदिर के मुख्य द्वार का नाम राजा गोपुरम है. मंदिर का सुंदर विमान सोने से मढ़ा हुआ है. गर्भगृह में भगवान स्कंद अर्थात कार्तिकेय की अत्यन्त सौम्य प्रतिमा विराजमान है. यहां कार्तिकेय संन्यासी रूप में हैं. इनके हाथ में दंड है. मान्यता है कि स्कंद रूप में इन्होंने अत्याचारी सूरपदम का अंत किया था. दण्डधारण करने के कारण इन्हें ‘दण्डायुधपाणि’ भी कहा जाता है.

पलनी शहर

पलनी मंदिर में दर्शन से पूर्व तीर्थयात्री माता पार्वती को समर्पित मंदिर पेरियानाथकी अम्मन मंदिर के दर्शन और विनायक जी मंदिर में नारियल चढ़ाते हैं. पहाड़ी पर पहुंचने के लिए 697 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. यहां रज्जू मार्ग (रोप औक ट्रॉली) की भी व्यवस्था है. मंदिर से पलनी शहर का विहंगम दृश्य दिखलायी पड़ता है. यहीं से शक्तिगिरि पहाड़ी भी दिखायी पड़ती है. यहां इंदुम्बन का भी मंदिर बना हुआ है. सुब्रमण्यम स्वामी के द्वारपालक के रूप में इंदुम्बन की पूजा- अर्चना की जाती है. मदुरै से पलनी की दूरी 115 किलोमीटर है. पर्यटन स्थल कोडाईकनाल से यहां की दूरी 64 किलोमीटर है. यहां पलनी देवस्थानम बोर्ड द्वारा भक्तों को ठहराने की सुविधा उपलब्ध करायी जाती है. बोर्ड द्वारा प्रसाद के रूप में पंचामृत तथा विभूति की बिक्री की जाती है, जिसे अपने परिजनों एवं बंधु-बांधवों के लिए लोग श्रद्धा-स्वरूप ले जाते हैं.

हर हर महादेव
कार्तिकेय भगवान की जय
श्री कृष्ण शरणम ममः

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