Nidhivana Vrindavan

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Nidhivana Vrindavan
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निधिवन वृन्दावन

कहा जाता है की निधिवन की सारी लताये गोपियाँ है। जो एक दूसरे कि बाहों में बाहें डाले खड़ी है जब आधी रात में निधिवन में राधा रानी जी, बिहारी जी के साथ रास लीला करती है। तो वहाँ की लता पताये गोपियाँ बन जाती है। और फिर रास लीला आरंभ होती है। इस रास लीला को कोई भी नहीं देख सकता। दिन भर में हजारों बंदर, पक्षी, जीव जंतु निधिवन में रहते है पर जैसे ही शाम होती है। सब जीव जंतु वहा से अपने आप चले जाते है एक परिंदा भी वहाँ नहीं रुकता।

यहाँ तक कि जमीन के अंदर के सभी जीव चीटी आदि भी जमीन के अंदर चले जाते है। राधा कृष्ण की रास लीला को कोई नहीं देख सकता क्योकि रास लीला इस लौकिक जगत की लीला नहीं है रास तो अलौकिक जगत की परम दिव्यातिदिव्य लीला है। कोई साधारण मनुष्य या जीव अपनी आँखों से देख ही नहीं सकता। जो बड़े बड़े संत है उन्होंने निधिवन से राधारानी जी और गोपियों के नुपुर की ध्वनि सुनी है।

Nidhivan Ratri Darshan Vrindavan
Nidhivan Ratri Darshan Vrindavan

जब रास करते करते राधा रानी जी बहुत थक जाती है तो बिहारी जी उनके चरण कमल दबाते है। और रात्रि में निधिवन में शयन करते है आज भी निधिवन में शयन कक्ष है जहाँ आज भी पुजारी जी जल का पात्र, पान, फुल और प्रसाद रखते है। और जब सुबह पट खोलते है तो जल पीला, पान चबाया हुआ और फूल बिखरे हुए मिलते है।

निधिवन कथा

एक बार कलकत्ता का एक भक्त अपने गुरु जी की सुनाई हुई। भागवत कथा से इतना मोहित हुआ कि वह हर घडी वृन्दावन आने की सोचने लगा। उसके गुरु जी उसे निधिवन के बारे में बताते थे और कहते थे कि आज भी भगवान यहाँ निधिवन में रात्रि को रास रचाने आते है पर उस भक्त को इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था और एक बार उसने निश्चय किया कि वृन्दावन जरुर जाऊंगा और ऐसा ही हुआ।

श्री राधा रानी जी की कृपा हुई और आ वह आ गया श्री वृन्दावन धाम उसने जी भर कर बिहारी जी का राधा रानी का दर्शन किया। लेकिन अब भी उसे इस बात का यकीन नहीं था कि निधिवन में रात्रि को भगवान रास रचाते है उसने सोचा कि एक दिन निधिवन रुक कर देखता हूँ। इसलिए वो वही पर रूक गया और देर तक बैठा रहा और जब शाम होने को आई तब एक पेड़ की लता की आड़ में छिप गया।

Shri Hari Das Ji Darshan Nidhivan Vrindavan
Shri Hari Das Ji Darshan Nidhivan Vrindavan

जब शाम के वक़्त वहा के पुजारी निधिवन को खाली करवाने लगे तो उनकी नज़र उस भक्त पर पड गयी जो लता के पीछे छिपा हुआ था और उसे वहा से जाने को कहा तब तो वो भक्त वहा से चला गया। लेकिन अगले दिन फिर से वहा जाकर छिप गया और फिर से शाम होते ही पुजारियों द्वारा निकाला गया और आखिर में उसने निधिवन में एक ऐसा कोना खोज निकाला जहा उसे कोई न ढूंढ़ सकता था और वो आँखे मूंदे सारी रात वही निधिवन में बैठा रहा और अगले दिन जब सेविकाए निधिवन में साफ़ सफाई करने आई तो पाया कि एक व्यक्ति बेसुध पड़ा हुआ है और उसके मुह से झाग निकल रहा है।

Nidhivan Shayan Darshan Jahan Bhagwan Shri Krishna or Radha Rani Ji Ratri Main Vishram Karte Hai
Nidhivan Shayan Darshan Jahan Bhagwan Shri Krishna or Radha Rani Ji Ratri Main Vishram Karte Hai

उन सेविकाओ ने सभी को बताया तो लोगो कि भीड़ वहा पर जमा हो गयी। सभी ने उस व्यक्ति से बोलने की कोशिश की लेकिन वो कुछ भी नहीं बोल रहा था। लोगो ने उसे खाने के लिए मिठाई आदि दी लेकिन उसने नहीं ली और वो ऐसे ही ३ दिनों तक बिना कुछ खाए पिये। ऐसे ही बेसुध पड़ा रहा और 5 दिन बाद उसके गुरु जो कि श्री गोवर्धन में रहते थे। उनको बताया गया तब उसके गुरूजी वहा पहुचे और उसे गोवर्धन अपने आश्रम में ले आये।

आश्रम में भी वो ऐसे ही रहा और एक दिन सुबह सुबह उस व्यक्ति ने अपने गुरूजी से लिखने के लिए कलम और कागज़ माँगा गुरूजी ने ऐसा ही किया और उसे वो कलम और कागज़ देकर मानसी गंगा में स्नान करने चले गए। जब गुरूजी स्नान करके आश्रम में आये तो पाया कि उस भक्त ने दीवार के सहारे लग कर अपना शरीर त्याग दिया था। और उस कागज़ पर कुछ लिखा हुआ था।

उस कागज पर जो लिखा था वो इस प्रकार है।

गुरूजी मैंने यह बात किसी को भी नहीं बताई है। पहले सिर्फ आपको ही बताना चाहता हूँ। आप कहते थे न कि निधिवन में आज भी भगवान रास रचाने आते है और मैं आपकी कही बात पर विश्वास नहीं करता था। लेकिन जब मैं निधिवन में रूका तब मैंने साक्षात श्री बांके बिहारी जी को राधा रानी जी और अन्य गोपियों के साथ रास रचाते हुए दर्शन किया और अब मेरी जीने की कोई इच्छा नहीं है। इस जीवन का जो लक्ष्य था वो लक्ष्य मैंने प्राप्त कर लिया है और अब मैं जीकर करूँगा भी क्या?

Shri Haridas Ji Samadhi Sthal Nidhivan Vrindavan
Shri Haridas Ji Samadhi Sthal Nidhivan Vrindavan

श्री श्याम सुन्दर की सुन्दरता के आगे ये दुनिया वालो की सुन्दरता कुछ भी नहीं है। इसलिए आपके श्री चरणों में मेरा अंतिम प्रणाम स्वीकार कीजिये वो पत्र जो उस भक्त ने अपने गुरु के लिए लिखा था। वो आज भी मथुरा के सरकारी संघ्रालय में रखा हुआ है। जो की बंगाली भाषा में लिखा हुआ है।

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