मुक्ति के लिये साधन की आवश्यकता
भगवान सर्वज्ञ हैं, सब कुछ जानते हैं, परंतु किसकी मुक्ति होगी इसको भगवान भी पहले से नहीं जानते हैं, यदि पहले से ही जान जाएं तो प्रयत्न की क्या आवश्यकता है? भगवान तो जानते हैं फिर प्रयत्न क्या हो? यह बात नहीं कि भगवान जान नहीं सकते, जीवों को अवसर दिया है, यदि भगवान निश्चित कर दें कि भविष्य में इसकी मुक्ति होगी तो प्रयत्न की क्या आवश्यकता।
प्रेम और निष्काम भाव ज्यादा हो तो भगवान जल्दी मिल जाएं। पूर्व के संचित पाप से भी भगवान के मिलने में तारतम्यता हो जाएं। ये सब दृश्य पदार्थ नाशवान हैं, इसलिए जिस काम के लिये आना हुआ है, उसे बना लेना चाहिए। जो मर जाता है, उसका फिर पता नहीं चलता कि कहां गया, इसलिए जो काम करना है जल्दी कर लेना चाहिए। हम अनेक बार देव, पशु, मनुष्य आदि हो गये, कितनी बार इंद्र, ब्रह्मा आदि होकर नष्ट हो गये।
जल के परमाणु गिने जा सकते हैं, किंतु इंद्र, ब्रह्मा नहीं, इसलिए अनंत जन्मों के इस चक्र से बचने के लिये साधन करना चाहिये, अन्यथा यह स्थिति होगी।
सो परत्र दुख पावइ सिर धुनि धुनि पछिताइ।
कालहि कर्महि ईस्वरहि मिथ्या दोस लगाइ।।
इसलिए जिस काम के लिये आये हैं, उसको वीरता के साथ करना चाहिए। हम संसार में खान, पान, भोग, आराम के लिए नहीं आये हैं। आहार, निद्रा आदि तो पशु भी करते हैं, यदि इसी में अपना जीवन बिता दिया तो क्या लाभ हुआ। अत: हमें सावधानी के साथ भजन साधन में लगाना चाहिये। जिस काम के लिये यहां आये हैं वह काम पहले करना चाहिये, वह है भगवत्प्राप्ति।
बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय।
जय जय श्री राधे।
श्री राधा- कृष्ण की कृपा से आपका दिन मंगलमय हो।
श्री कृष्ण शरणम ममः