Man Maakhan Kaise Ho Krishna Leela Maadhury

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Man Maakhan Kaise Ho Krishna Leela Maadhury
Man Maakhan Kaise Ho Krishna Leela Maadhury

मन माखन कैसे हो कृष्णा लीला माधुर्य

ऐसा क्या था गोपियों के पास कि कृष्ण स्वयं बिना बुलाए,उनके मन का काम (गोपियाँ चाहती थी कि हमारे घर आकर चोरी करे )कर देते थे। वास्तव में देखा जाए तो गोपियों ने अपने चित्त को माखन बनाया था,और उनके चित्त रूपी माखन को ही भगवान चुराते थे। सबसे पहले जानते है कि माखन बनता कैसे है। ये जानना अति आवश्यक हे सबसे पहले दूध दुहते है। फिर औठते है फिर ठंडा करते है फिर जामन डालकर उसे ज़माने देते है फिर जब मथना हो उससे पहले जल छोड़ते है फिर मथानी से मथते है तो छाछ तो नीचे बैठ जाती है और माखन ऊपर आ जाताहै। अब यदि अपने चित्त को माखन बनाना हो तो ? सबसे पहले दूध दुहना पड़ेगा, दूध भी एकदम शुद्ध होना चाहिये।

कौन से दूध की आवश्यकता है हमें ? ये दूध है “गीता का उपदेश” जो एकदम शुद्ध है. इस दूध को दुहने के लिए पात्र की आवश्यकता है,पात्र बड़ा महतवपूर्ण है,क्योकि यदि शुरुवात ही ठीक नहीं हुई तो अंत तक पहुच ही नहीं सकते। देखो दो परिस्थितियों में पात्र में दुध नहीं ठहरेगा, पहला यदि पात्र में कुछ खटास लगी हो,तो दूध फट जाएगा और दूसरा यदि पात्र में नीचे छेद हो तो दूध बह जाएगा रूपी दूध को रखने के लिए ह्रदयरूपी पात्र में कामनाओ की खटाई नहीं लगी होनी चाहिये, दूसरा कुसंगरूपी छेद नहीं होना चाहिये।

वरना ऊपर से हम डालते जा रहे है.ज्ञान को ग्रहण करते जा रहे है और दूसरी ओर से कुसंग में भी लगे हुए है,तो कैसे बात बनेगी ये दो बाते न हुई तो दूध टिक जायेगा। अब पता कैसे चलेगा कि कुसंग में है? गीता जी का उपदेश आ रहा है, तो व्याकुलता का उदय होने लगेगा, व्याकुलता नहीं बढ़ रही तो सब समझना कही गडबड है। इस दूध को अब हमें उबालना हे दूध तो अग्नि पर ही उबलता है इसी तरह ये गीतारूपी दुध भी विरहअग्नि में उबलता है।

जाबालि नाम के एक ऋषि थे ब्रह्मविद्या प्राप्त कर ली सोचने लगे ज्ञान का अंतिम लक्ष्य यही है और मैंने इसे प्राप्त कर लिया,एक दिन एक पर्वत पर गए देखा एक सुन्दर युवती तप में लगी हुई है बोले – आप कौन हो?और तप क्यों कर रहीहो ? युवती बोली – मै ब्रह्मविद्या हूँ, और व्रज में गोपी रूप में जन्म हो इसलिए तप कर रही हूँ,ऋषि को बड़ा आश्चर्य हुआ कि ब्रह्म विद्या को प्राप्त करने के लिए लोग वर्षों तप करते है, क्या ब्रह्म विद्या से भी आगे कुछ है?

जो ये तप कर रही है आज पता चला.बोले क्यों गोपी बनना है? ब्रह्मविद्या बोली – ऐसे ज्ञान का क्या लाभ जहाँ ब्रह्म को तो पा लिया पर सगुण साकार रूप में प्रत्यक्ष लीला करते तो गोपिया ही देखती है वे मिलन और विरह का आनंद लेती है,मै भी कृष्ण विरह चाहती हूँ,तब ऋषि भी तप में लग गए और व्रज में गोपी रूप में अवतरित हुए अर्थात विरह प्रेमी जनों का सबसे बड़ा धन है। जब विरह अग्नि में उबाल लिया हमने ज्ञान को, फिर जमाना है अर्थात उसविरह में स्थिरता लानी हे फिर जामन डालना है गोपी जामन डालती है।

गोपी कौन ? जो प्रत्येक इंद्रिय से नित्य बिहार के रस को पिए,देखो जामन तो थोडा सा ही डालते है,पर उसका प्रभाव बहुत होता है. इसी तरह जो भगवत रस को जानता है उसी गुरु से जामन डलवाओ और जामन क्या है – वो है “गुरुमंत्र”, जो होता तो बहुत छोटा है पर उसका प्रभाव बहुत होता है। फिर जल छोड़ा जाता है,अर्थात प्रेमरूपी जल छोडो, फिर विचारों की मथानी डालकर मथना शुरू करो, सारी चीजे नीचे बैठ जायेगी और माखन ऊपर आ जायेगा, माखन का अर्थ होता है “मा” अर्थात क्रोध और “खन” अर्थात नहीं चित्त में क्रोध नहीं,जब चित्त अत्यंत प्रेममयी हो जाता है तब ऐसे चित्त को कृष्ण चुराते है।

जय श्री कृष्ण

बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय।
जय जय श्री राधे।
श्री राधा- कृष्ण की कृपा से आपका दिन मंगलमय हो।
श्री कृष्ण शरणम ममः

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