मकर संक्रांति का महत्व
पुराणों के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्यदेव अपने पुत्र शनिदेव के घर एक महीने के लिए जाते हैं, क्योंकि मकर राशि का स्वामी शनि है। हालांकि ज्योतिषीय दृष्टि से सूर्य देव और शनिदेव का तालमेल संभव नहीं, लेकिन इस दिन सूर्यदेव खुद अपने पुत्र शनिदेव के घर जाते हैं। इसलिए पुराणों में यह दिन पिता-पुत्र के संबंधों में निकटता की शुरुआत के रूप में भी देखा जाता है।
मत्स्य पुराण और स्कंद पुराण में मकर संक्रांति के बारे में विशिष्ट उल्लेख मिलता है। मत्स्य पुराण में व्रत विधि और स्कंद पुराण में संक्रांति पर किए जाने वाले दानो को लेकर व्याख्या प्रस्तुत की गई है।
सूर्यदेव छः माह दक्षिणायन में रहते है और छः माह उत्तरायण में रहते है। मकर संक्रांति प्रति वर्ष चौदह जनवरी को पड़ती है। और पंचांग के महीनों के अनुसार यह तिथि पौष या माघ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ती है। चौदह जनवरी को सूर्यदेव प्रति वर्ष धनु राशि का भ्रमण पूर्ण कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं।
संक्रान्ति का अर्थ
जिस राशि पर सूर्य स्थित हो, उसे छोड़कर जब दूसरी राशि में प्रवेश करे, उस समय का नाम संक्रान्ति कहलाता है। सूर्य बारह स्वरूप धारण करके, बारह महीनों में बारह राशियों में संक्रमण करते रहते हैं अत: उनके संक्रमण से ही संक्रान्ति होती है। इस प्रकार एक वर्ष में बारह संक्रान्ति होती हैं किन्तु इनमें से सबसे ज्यादा महत्व मकर-संक्रान्ति का होता है।
मकर-संक्रान्ति है देवताओं का प्रभातकाल
सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना “मकर-संक्रान्ति” कहलाता है। इसी दिन सूर्य अपनी कक्षाओं में परिवर्तन कर दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाते हैं। उत्तरायण को “देवताओं का दिन” और दक्षिणायन को “देवताओं की रात” कहा जाता है। इस तरह मकर-संक्रान्ति देवताओं का प्रभातकाल होती है। इस परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर हुआ परिवर्तन माना जाता है। मकर-संक्रान्ति से दिन बड़े होने लगते है और राते छोटी होने लगती है। इससे प्रकाश अधिक व अंधकार कम होने लगता है इसके फलस्वरूप प्राणियों की चेतनता और कार्यक्षमता में वृद्धि होने लगती है।
मकर-संक्रान्ति पर गंगास्नान का महत्त्व
माघ मकरगत रबि जब होई।
तीरथपतिहिं आव सब कोई।।
ऐसा कहा जाता है कि मकर-संक्रान्ति के दिन सभी देवी-देवता अपना स्वरूप बदलकर गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर प्रयाग में स्नान के लिए आते हैं। इसी कारण मकर-संक्रान्ति के दिन गंगास्नान या अन्य नदियों में स्नान को अत्यन्त पुण्यदायी माना गया है।
मकर-संक्रान्ति के दिन दान का फल अक्षय होता है
मकर संक्रान्ति के दिन किए गए स्नान, तर्पण, दान और पूजन का फल अक्षय होता है। इससे मनुष्य सभी प्रकार के भोगों के साथ मोक्ष को प्राप्त होता है।
उत्तरप्रदेश में इस पर्व को “खिचड़ी” कहते हैं। इस दिन खिचड़ी खाना, तिल, घी, कम्बल और ऊनी वस्त्र के दान देने का विशेष महत्त्व है। शीतकाल में ऊनी वस्त्र दान करने से शरीर में कभी कोई दु:ख नहीं होता है। मकर-संक्रान्ति को किसी भी वस्तु का चौदह की संख्या में संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देने की परम्परा भी है।
यह पर्व दक्षिण भारत में “पोंगल” और असम में “बिहू” के रूप में मनाया जाता है। पंजाब और जम्मू-कश्मीर में मकर-संक्रान्ति पर्व और “लोहिड़ी” के नाम से मनाया जाता है।
एक लोक कथा है कि मकर-संक्रान्ति के दिन कंस ने भगवान श्रीकृष्ण को मारने के लिए लोहिता नाम की राक्षसी को गोकुल भेजा था पर श्रीकृष्ण ने उस राक्षसी को खेल-खेल में ही मार डाला था। इसी संदर्भ में लोहिड़ी का पर्व मनाया जाता है। साथ ही नयी फसल का चावल, दाल, तिल आदि से पूजा करके कृषि देवता के प्रति आभार प्रकट किया जाता है।
ऐसे करें संक्रान्ति काल में भगवान सूर्य का पूजन
संक्रान्ति के दिन प्रात: काल स्नान करके स्नान, दान, जप और होम आदि से पहले इस प्रकार संकल्प कर लें।
मम ज्ञाताज्ञात समस्त पातकोपपातक दुरित क्षयपूर्वक श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त पुण्यफल प्राप्तये श्रीसूर्यनारायण प्रीतये स्नानदानजपहोमादि कर्माहं करिष्ये।
अर्थात्: मैं अपने जाने-अनजाने सभी पापों के नाश के लिए, श्रुति-स्मृति और पुराणों का पुण्य फल प्राप्त करने और भगवान सूर्य की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए स्नान, दान, जप और होम आदि कार्य करुंगा।
इसके बाद भगवान सूर्यनारायण जी का पूजन कर व्रत करने से सब प्रकार के पापों का नाश, आधि-व्याधि का नाश व सब प्रकार की हीनता और संकोच का अंत हो जाता है, साथ ही सुख-संपत्ति, संतान व सहानुभूति की प्राप्ति भी होती है।
संक्रान्तिकाल में “ॐ सूर्याय नम:” या “ॐ नमो भगवते सूर्याय” मंत्र का जप और आदित्यहृदयस्तोत्र का पाठ करना चाहिए। घी, बूरा व मेवा मिले तिलों से हवन कर, अन्न-वस्त्र का दान देना चाहिए। कभी भी संक्रान्ति की रात्रि में स्नान व दान नहीं करना चाहिए।
धन की प्राप्ति के लिए धनसंक्रान्ति का व्रत
संक्रान्ति के दिन एक कलश में जल भरकर सर्वोषधि डाले, साथ में फल व दक्षिणा रखकर रोली चावल से कलश का पूजन करें। भगवान सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर एक समय भोजन करें। पूजा के बाद वह कलश ब्राह्मण को दे दें। एक वर्ष तक इस तरह हर संक्रान्ति को व्रत व पूजन करने से मनुष्य को कभी धन की कमी नहीं रहती।
भोगों की प्राप्ति के लिए भोगसंक्रान्ति का व्रत
संक्रान्ति के दिन ब्राह्मण-दम्पत्ति को घर बुलाकर भोजन कराएं अथवा श्रृंगार सामग्री, पान, पुष्पमाला, फल व दक्षिणा देने से मनुष्य को मनचाहे भोगों की प्राप्ति होती है।
रूप की प्राप्ति के लिए रूपसंक्रान्ति का व्रत
रूप-सौन्दर्य की इच्छा रखने वाले मनुष्य को संक्रान्ति के दिन तेल मालिश के बाद स्नान करना चाहिए। फिर एक पात्र में घी व सोना रखकर उसमें अपनी छाया देखकर ब्राह्मण को दान दें तथा व्रत करें तो रूप सौन्दर्य की वृद्धि होती है।
तेज की प्राप्ति के लिए तेजसंक्रान्ति का व्रत
संक्रान्ति के समय एक कलश में चावल भरकर उस पर घी का दीपक रख दे। उसके समीप में मोदक रखकर, गंध-पुष्प से पूजन कर यह बोलते हुए जल छोड़ दें कि मैं अपने पापों के नाश के लिए और तेज की प्राप्ति के लिए इस पूर्ण पात्र का ब्राह्मण को दान करता हूँ। ऐसा दान से करने से मनुष्य के तेज में वृद्धि होती है।
आयु की प्राप्ति के लिए आयुसंक्रान्ति का व्रत
संक्रान्ति के समय एक कांसे की थाली में घी, दूध व सोना रखकर रोली चावल से पूजन कर ब्राह्मण को दान दें तो इस दान से तेज, आयु और आरोग्य की वृद्धि होती है।
वर्ष भर की बारह संक्रान्ति में दिये जाने वाले दान
- मेष संक्रान्ति में मेढ़ा (नर भेड़) का दान
- वृष संक्रान्ति में गौ का दान
- मिथुन संक्रान्ति में अन्न-वस्त्र और दूध-दही का दान
- कर्क संक्रान्ति में गाय
- सिंह संक्रान्ति में सोना, छाता आदि
- कन्या संक्रान्ति में वस्त्र और गाय
- तुला संक्रान्ति में जौ, गेहूं, चना आदि धान्य
- वृश्चिक संक्रान्ति में मकान, झौंपड़ी आदि
- धनु संक्रान्ति में वस्त्र और सवारी
- मकर संक्रान्ति में लकड़ी, घी, ऊनी वस्त्र
- कुम्भ में गायों के लिए घास और जल
- मीन में सुगन्धित तेल और पुष्प का दान करना चाहिए।
इस प्रकार संक्रान्ति के अवसर पर जो कुछ भी दान किया जाता है, भगवान सूर्यनारायण जी उसे जन्म-जन्मान्तर तक प्रदान करते रहते है और सब प्रकार की मनोकामनाएं पूरी करते हैं।