मैया मोहे ब्रज बिसरत नाहि
मेरे कृष्ण कदम के वृक्ष के नीचे खड़े हैं, यह वृन्दावन की उन अनोखी शामों में से एक है। जब शीतल, मंद सुगंधित पवन चारों ओर बह रही है कृष्ण ने मुरली बजाने के लिए उसे अपने होठो पर रखकर हौले से उसमे फूंका… लेकिन उनकी बंसी आज कोई धुन नहीं निकाल रही। कृष्ण ने सामने खड़े गौओं के साथ अपने ग्वाल-बाल सखाओं को देखा और उनका नाम लेकर पुकारा लेकिन किसी ने उन्हें नहीं सुना कृष्ण बहुत चकित थे।आज हर कोई उन्हें अनदेखा क्यूँ कर रहा है???
एकाएक उन्होंने भोली राधे को अपनी ओर आते देखा, कृष्ण के चेहरे पर अनायास ही मुस्कान छा गयी। राधे तो मुझसे ज़रूर बात करेगी, लेकिन ये क्या राधे ने भी उन पर ध्यान नहीं दिया और उनके सामने से बिना बात किये ही गुज़र गयीं। कृष्ण बहुत ही मायूस होकर, खिसियाते हुए राधे का हाथ झपट कर पकड़ने की कोशिश करते हैं। राधे!!!!!!!!!
कृष्ण की चीख सुनकर माँ देवकी नींद से जाग जाती हैं और कृष्णा के पलंग के पास जाकर , उनके माथे पर हाथ रखकर पूंछती हैं। क्या कोई स्वप्न देख रहे थे …लल्ला???…और ये राधे कौन है???
कृष्ण आँख खोलते हैं और खुद को मथुरा के सूनसान महल में पाते है। वे माता देवकी की गोद से चिपट कर फूट-फूट कर रोने लगते हैं।
मैया मोहे ब्रज बिसरत नहि ब्रज बिसरत नहि
हंस सुता को सुंदर कलरव और कुंजन की छाँही
यह मथुरा कंचन नगरी
की मणि मुख ताजहि माहि और
जबहि सुरत आबहि बा सुख की
जिय उमगत सुध माहि
मैया मोहे बृज बिसरत नाहि