Maharshi Vashishth Ka Krodh

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Madanmohan Gopinath Govinda Temple Vrindavan
Madanmohan Gopinath Govinda Temple Vrindavan

महर्षि वशिष्ठ का क्रोध

एक बार आप, ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्यूष और प्रभाष आदि अष्ट वसु अपनी पत्नियों के साथ महर्षि वशिष्ठ के आश्रम के समीप घूम रहे थे। प्रभाष की पत्नी की नजर आश्रम में कामधेनु गाय पर पड़ी, वह कामधेनु को देखकर ललचा गईं। उन्होंने अपने पति से कहा कि आप स्वयं वसु है, ऐसी दिव्य गाय का किसी मुनि के पास क्या काम, मुझे यह गाय चाहिए। आपको चाहे चोरी ही क्यों न करनी पड़ें परंतु यह गाय लाकर दीजिए। प्रभास ने अन्य वसुओं के बात की और अपनी पत्नी के हठ की बात बताई। प्रभाष की जिद पर सातों वसु चोरी के लिए राजी हो गए, सबने मिलकर वशिष्ठ के आश्रम से कामधेनु गाय चुरा ली।

महर्षि वशिष्ठ ने दिव्य दृष्टि से पता लगा लिया कि चोरी किसने की है। देवतुल्य वसु अब चोरी करने लगे हैं, इस बात से वशिष्ठ बड़े क्रोधित हुए। वशिष्ठ ने वसुओं को शाप दिया कि वह वसु का पद त्यागकर मानव रूप में धरती पर चले जाएंगे। मनुष्य के रूप में पैदा होकर और मनुष्य के भाति कष्ट सहना पड़ेगा। ॠषि का शाप सुनकर सभी वसु उनके पैरों में गिर कर माफी मांगने लगे, उन्होंने बताया कि प्रभास की पत्नी के दबाव में उन्हें चोरी करनी पड़ी। ॠषि ने कहा कि शाप वापस नहीं हो सकता, चूंकि प्रभाष ने पत्नी के प्रेम में पड़कर सभी वसुओं को चोरी जैसे गंदे कार्य के लिए उकसाया है। इसलिए उसे ज्यादा दंड मिलेगा।

सात वसुओं के लिए वशिष्ठ ने कहा कि आप गंगा के गर्भ से जन्म लेंगे लेकिन जन्म लेने के तत्काल बाद गंगा आपको जल में डुबोकर शाप से मुक्ति दिलाएंगी। प्रभाष को पूरा शाप भोगना पड़ेगा, उसने पत्नी की इच्छा पूरी करने के लिए चोरी की है इसलिए मनुष्य रूप में वह जन्म लेगा और पत्नी सुख से वंचित रहेगा। वशिष्ठ प्रभाष पर अत्यंत क्रोधित थे, उन्होंने कहा कि प्रभाष का अपनी पत्नी से लंबा वियोग होगा इसलिए मानव रूप में जन्म लेने पर उसकी आयु बहुत लंबी होगी।

वह संसार में अनेक दुख भोगेगा और कोई स्त्री ही उसकी मृत्यु का कारण बनेगी। प्रभाष ने वशिष्ठ से बार-बार क्षमा मांगी तो उन्होंने थोड़ी दया दिखाते हुए कहा लंबी आयु तुम्हारे लिए शाप की जगह वरदान बनेगी। श्रीविष्णु मानव अवतार लेंगे और वह तुम्हें प्रणाम करेंगे। तुम्हारी वीरता, त्याग और आयु के कारण मानव रूप में आने वाले सभी देवता तुम्हारी वंदना करेंगे।

प्रभाष ही गंगापुत्र देवव्रत हुए और जीवन भर ब्रह्मचर्य का पालन करने जैसे कठिन व्रत लेने के कारण उन्हें भीष्म नाम मिला. स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी वंदना की थी।

बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय।
जय जय श्री राधे।
श्री राधा- कृष्ण की कृपा से आपका दिन मंगलमय हो।
श्री कृष्ण शरणम ममः

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