महादेव के पिप्पलाद अवतार की पूजा से दूर होता है शनि दोष
श्री पिप्पलाद जी अवतार
राक्षस वृत्तासुर का वध करने के लिए महर्षि श्री दधीचि जी की हड्डियों से ही श्री इंद्र जी ने अपना वज्र बनाकर वृत्तासुर का वध किया था। क्योंकि महर्षि श्री दधीचि जी की हड्डियां शिव के तेज से युक्त और शक्तिशाली थी। महर्षि श्री दधीचि जी की पत्नी श्री सुवर्चा जी जब आश्रम लौटकर वापस आई तो उन्हें पता चला कि उनकी हड्डियों को उपयोग देवताओं के अस्त्र शत्र बनाने में हुआ है। तो वह सती होने के लिए आतुर हुई तो आकाशवाणी हुई कि तुम्हारे गर्भ में महर्षि श्री दधीचि जी के ब्रह्मतेज से भगवान शंकर जी का अंश अवतार होगा। अत: उसकी रक्षा करना आवश्यक है।
यह सुनकर सुवर्चा जी पास के पेड़ के नीचे बैठ गई जहां उन्होंने एक सुंदर बालक को जन्म दिया। पीपल के पेड़ के नीचे जन्म होने के कारण श्री ब्रह्माजी ने उनका नाम पिप्पलाद रखा और सभी देवताओं ने उनके सभी संस्कार पूर्ण किए। महर्षि श्री दधीचि जी और उनकी पत्नी सुवर्चा जी दोनों ही भगवान शिव जी के परम भक्त थे। उन्हीं के आशीर्वाद से उनके यहां भगवान शिव जी ने श्री पिप्पलाद जी के रूप में जन्म लिया था।
एक अन्य श्री शनि भगवान जी से सम्बंधित कथा है कि श्री पिप्पलाद जी ने देवताओं से पूछा- क्या कारण है कि मेरे पिता महर्षि श्री दधीचि जी जन्म से पूर्व ही मुझे छोड़कर चले गए? जन्म होते ही मेरी माता भी सती हो गई और बाल्यकाल में ही मैं अनाथ होकर कष्ट झेलने लगा। यह सुनकर देवताओं ने बताया शनिग्रह की दृष्टि के कारण ही ऐसा कुयोग बना है। श्री पिप्पलाद जी यह सुनकर बड़े क्रोधित हुए और कहने लगे की यह शनि नवजात शिशुओं को भी नहीं छोड़ता है। उसे इतना अहंकार है।
तब एक दिन उनका सामना श्री शनि जी से हो गया तो उन्होंने अपने ब्रह्मदंड उठाया और उससे शनि जी पर प्रहारा किया जिससे शनिदेव जी ब्रह्मदंड का प्रहार नहीं सह सकते थे। इसलिए वे उससे डर कर भागने लगे, तीनों लोगों की परिक्रमा करने के बाद भी ब्रह्म दंड ने शनिदेव का पीछा नहीं छोड़ा और उनके पैर पर आकर लगा जिससे शनिदेव लंगड़े हो गए।
सभी देवताओं ने श्री पिप्पलाद मुनि जी से शनिदेव जी को क्षमा करने के लिए विनय किया तब श्री पिप्पलाद मुनि जी ने शनिदेव जी को क्षमा को कर दिया। देवताओं की प्रार्थना पर श्री पिप्पलाद मुनि जी ने शनि को इस बात पर क्षमा किया कि शनि जन्म से लेकर 16 साल तक की आयु तक किसी को कष्ट नहीं देंगे। तभी से श्री पिप्पलाद मुनि जी का स्मरण करने मात्र से शनि की पीड़ा दूर हो जाती है।
श्री पिप्पलाद जी की जय
ॐ नमः शिवाय