श्री लाला व्यास जी के जीवन से संबंधित परिचर्चा
जन्मतिथि 3 सितंबर 1989
जन्म स्थान:- श्री गोवर्धन गिरिराज जी धाम जिला मथुरा उत्तर प्रदेश
जब 9 साल की उम्र का अंतिम पड़ाव चल रहा था पता नहीं अंदर से कुछ इच्छा हुई कि आज दानघाटी गिरिराज जी मंदिर चल कर दर्शन करके आते हैं। अपने बड़े भाई पियूष शर्मा जी के साथ लाला व्यास जी दानघाटी गिरिराज जी मंदिर दर्शन करने गए, वह मंदिर की बनावट कुछ इस प्रकार से है कि कोई राहगीर भी आते जाते ऊपर से दर्शन कर सकते हैं। उस समय मां ने दर्शन करने जाने से रोका और कहा अभी गोवर्धन में कई बच्चों को अपरहण करने की खबर आई है तुम लोगों का जाना सुरक्षित नहीं है। लेकिन पिताजी श्री लक्ष्मण प्रसाद शर्मा जी ने कहा कोई बात नहीं जाओ पर थोड़ा संभल कर जाना और अपना ध्यान रखना और दर्शन करके जल्दी आ जाना।
पहुंच गए दानघाटी गिरिराज जी मंदिर ऊपर से प्रभु की सुंदर झांकी का दर्शन कर रहे थे। दर्शन करते – करते लाला व्यास जी के मन में विचार आया पता नहीं कैसे अंदर से कुछ इस तरह की भावना आई कि मन ही मन लाला व्यास जी सोचने लगे क्या प्रभु हे ठाकुर जी मैं व्यास नहीं बन सकता। स्वत: अपने आप ही अंदर से विचार आए कहां से प्रेरणा मिली कहां से मन में यह बात आई कोई पता नहीं। मन ही मन ऐसे विचार करते हुए प्रभु के दर्शन कर रहे थे कि तभी पीछे से एक साधु आए और आकर लाला व्यास जी के सिर पर हाथ रखा और कहा कि लाला क्या सोच रहे हो यह सोच रहे हो कि क्या प्रभु मैं व्यास नहीं बन सकता बन नहीं सकते बनोगे जाओ अभ्यास करो।
जब इस तरह उस साधु ने कहा तो सर्वप्रथम लाला व्यास जी ने उनकी ऊपर से नीचे तक वेशभूषा को देखा सफेद धोती नीचे पहनी हुई थी, सफेद ऊपर से डाली हुई थी, सफेद दाढ़ी थी, सफेद ही बाल थे और चेहरे पर बहुत ही ज्यादा तेज था आंख भी लाल हो रही थी। व्यास जी ने उस साधु को देखा और देख कर एक बार अंदर से डर भी आया कि यह वही तो बाबा नहीं जो आजकल बच्चों का अपहरण करके ले जा रहे हैं लेकिन दूसरे ही पल दूसरी बात मन में आई कि इनको कैसे पता चला कि मैं अपने मन ही मन क्या सोच रहा हूं क्योंकि मेरे साथ मेरे भाई भी आए हुए हैं मैंने उनको भी अपने मन की बात नहीं बताई लेकिन साधु को मेरे मन की बात कैसे पता चली।
और तीसरा जो उस समय बाबा साधु व्यास जी के सिर पर हाथ फिराते हुए बात कर रहे थे तो उस समय पूरे शरीर में मानो कुछ अजीब सी हलचल हो रही थी कुछ पूरे शरीर में खून का संचार तेज सा हो रहा था जैसे पूरे शरीर में बिजली का करंट सा दौड़ रहा हो अद्भुत। विलक्षण एवं अद्भुत प्रतिभा के धनी उस साधु बाबा ने केवल दो लाइन में अपनी बात कही और वापस चल दिए। लाला व्यास जी मन ही मन सारी बातें सोच रहे थे और सोचते सोचते उस साधु को देख रहे थे।
आस-पास में कोई भीड़ नहीं कोई लोग नहीं एकदम शांति थी कोई भी आ जा नहीं रहा था रोड भी खाली था। लेकिन जब वह साधु जा रहे थे तो लाला व्यास जी ने तुरंत अपने बड़े भाई पीयूष जी को इशारा करते हुए कहा भाई साहब – भाई साहब जरा देखना तो पियूष जी ने तुरंत अपनी आंखें खोल कर उस साधु को देखा तो उन्हें चेहरा नहीं केवल पीठ नजर आई और पीठ भी केवल 2 सेकंड नजर आई और साधु बीच रोड पर चलते हुए एकदम से गायब अंतर्ध्यान हो गए।
तब व्यास जी अपने भाई के साथ घर वापस आ गए और इस सारी घटना से माता-पिता को अवगत कराया। तो माता पिता एक दम सोच में पड़ गए की आखिर यह क्या था अगर वह साधु अपहरण करने के लिए आया था तो लेकर जाता जबरदस्ती करता और फिर मन के अंदर की सोची जा रही है वह बात जो किसी को पता नहीं वह उसे कैसे पता चली और यह शरीर में जो अजीब सी हलचल हुई यह क्या था इसके पीछे तो जरूर कोई ना कोई बड़ा ही कारण हो सकता है पिताजी ने सोचा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि भगवान ईश्वर इस घटना के माध्यम से कुछ विशेष कार्य करना चाह रहे हों। लाला व्यास जी के पिताजी ने इस बात को गंभीरता से लेते हुए घर में विचार-विमर्श करके व्यास जी की मां से कहा कि आप स्कूल जा करके बात करके आओ व्यास जी की मां ने स्कूल में जाकर के बात की और कहा कि लाला अभी किन्हीं कारणों बस कुछ दिनों के लिए स्कूल पढ़ाई करने के लिए नहीं आ पाएगा पेपर देने के समय आने पर पेपर देने अवश्य आएगा आप उसका नाम काटना मत और ध्यान रखना।
तब लाला व्यास जी के पिताजी ने लाला से कहा लाला मुझे कुछ लगता है कि शायद ईश्वर की कुछ लीला होने वाली है तो इसलिए तुमको हम 1 साल का समय देते हैं और तुम्हारे लिए श्रीमद्भागवत से संबंधित सभी प्रकार की सामग्रियां इकट्ठा कर देते हैं एकजुट कर देते हैं और फिर तुम्हारे ऊपर है कि तुम किस तरह से अपना अध्ययन करते हो क्योंकि याद करो उस साधु बाबा ने कहा था कि बन नहीं सकते, बनोगे जाओ अभ्यास करो। और हां अगर इस एक साल के अंदर कुछ नजर नहीं आता है तो तुम्हारी पढ़ाई तो बरकरार चल ही रही है पेपर देने तुम जाओगे ही इसी तरह से पढ़ाई फिर से दोबारा से अपनी चालू कर लेना। और हां बेटा हम तुम्हारा पूरा सहयोग करेंगे तुम्हें जिस भी चीज की आवश्यकता होगी हम वही तुम्हारे लिए उपलब्ध कराएंगे लेकिन इस बात को अपने दिमाग में अच्छे से बिठा लेना कि यह लोहे के चने हैं जो तुम्हें चबाने हैं। तो इस बात पर लाला व्यास जी ने अपनी सहमति दे दी और श्रीमद भागवत जी के अध्ययन में लग गए।
वाकई में काबिले तारीफ उस 9 साल की छोटी उम्र के बच्चे के लिए महत्वपूर्ण था। जो बिना किसी सहयोग के स्वयं सुबह 3:00 बजे 4:00 बजे जगना अपना स्नान ध्यान पूजा आदि करना सभी घर में सो रहे होते थे। और अकेले जग करके अपना सारा काम करना और करने के बाद में अपने आसन पर बैठ जाना किसी से कोई मतलब नहीं अपने आसन पर बैठकर भागवत जी का अध्ययन करना और अध्ययन करते करते सुबह 8:00 बजे नाश्ता के लिए, दोपहर में 12:00 बजे खाने के लिए फिर उसके बाद एक घंटा आराम के लिए और फिर से दिन में बैठ जाना निरंतर पूर्ण निष्ठा के साथ में अध्ययन के कार्य में लगे रहना कौन आ रहा है, कौन जा रहा है, कौन क्या कर रहा है किसी से कोई मतलब नहीं पिताजी ने भी इस निरंतर चल रहे कार्य में सभी परिवार के सदस्यों सहित पूर्ण सहयोग किया अनेकों ग्रंथों को पुस्तकों को लाकर दिया भागवत मूल पुस्तक संस्कृत, संस्कृत अनुवाद हिंदी, अनेक विद्वानों की भागवत पुस्तकें ऑडियो वीडियो कैसेट पूर्ण रूप से सभी व्यवस्था कर दी।
पर इसके अलावा भी जितना हो सकता था ज्यादा से ज्यादा समय देना पास में बैठना ध्यान से सुनना समझना और कोई कमी देखकर व्यास जी को रोकना सही मार्ग दिखाना इस तरह से क्रम यह बहुत ही अच्छे से चलता रहा क्रम चलते चलते पूरे 6 महीने व्यतीत हो गए। और तब लाला व्यास जी ने अपने मुख से पिताजी से एक बात कही पिताजी अब मैं तैयार हूँ। भागवत कथा करने के लिए पिताजी ने कहा बेटा अभी तुम्हारी उम्र बहुत छोटी है भागवत कथा करना बहुत ही मुश्किल है, मैं नहीं चाहता कि कहीं कोई जगह ऐसी आए जहां पर लोग तुम को नीचे गिरा दें। इसलिए अभी तुम पूर्ण रूप से जब तैयार हो जाओ तब मुझे कहना तब मैं आगे की व्यवस्था जैसे भी होगी जो भी होगी करूंगा लेकिन अभी नहीं।
तो लाला व्यास जी ने कहा नहीं पिता जी आप चिंता मत करो। मैं पूरी तरह से अब तैयार हूं। आप बिल्कुल बेफिक्र रहो मेरे अंदर से स्वयं ईश्वर की प्रेरणा निकल रही है। कि मैं श्रीमद् भागवत कथा करने के लिए तैयार हूं। पिताजी ने इस बात को ध्यान से सुना और समझा तब फिर घर में बैठकर सलाह मशवरा विचार-विमर्श किया। और कहां ठीक है लाला तुम श्रीमद् भागवत कथा करने के लिए पूरी तरह से तैयार हो लेकिन मेरा यह विचार है कि सर्वप्रथम श्रीमद् भागवत कथा गिनती में पांच अपने श्री गोवर्धन गिरिराज जी को भेंट स्वरूप में सुनानी है तब उसके बाद में श्रीमद् भागवत कथा को जनमानस तक पहुंचाना है।
क्योंकि जब श्री गोवर्धन गिरिराज जी तुम्हारे मुख से कही श्रीमद् भागवत कथा सुनेंगे उन्हीं की कृपा तुम्हारे ऊपर हुई थी। और जब उनको कोई भी कमी नजर आएगी तो वह उनकी जिम्मेदारी है, कि तुम्हें पूरा करेंगे इसलिए सर्वप्रथम पांच भेंट स्वरूप श्रीमद् भागवत कथा गोवर्धन गिरिराज जी धाम में ही करनी है। तो भेंट स्वरूप श्रीमद् भागवत कथा का क्रम प्रारंभ हुआ जिसमें सर्वप्रथम श्री गोवर्धन गिरिराज जी की
- प्रथम भेंट श्रीमद् भागवत कथा राधा कुंड परिक्रमा मार्ग हरगोकुल मंदिर श्री गोवर्धन गिरिराज जी धाम में विधि पूर्वक किया गया।
- द्वितीय श्रीमद् भागवत कथा आयोजन मनसा देवी मंदिर मानसी गंगा गोवर्धन पर संपन्न हुआ।
- तृतीय श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन पूर्ण भव्यता के साथ संगीत में एवं पूर्ण पांडित्य कर्मों के साथ दानघाटी मंदिर श्री गोवर्धन में किया गया।
- चतुर्थ श्रीमद् भागवत कथा भक्ति ज्ञान महायज्ञ का आयोजन मुखारविंद मंदिर मानसी गंगा श्री गोवर्धन गिरिराज जी धाम में विशाल रूप देते हुए आयोजित किया।
- पंचम कार्यक्रम श्रीमद् भागवत कथा का दिव्य आयोजन एकता सेवा सदन बस स्टैंड के सामने गोवर्धन पर सफलतापूर्वक पूर्ण किया गया।
इन्हीं कार्यक्रमों के शुरुआती दौर में ही ईश्वर की कृपा से मुंबई बड़ौदा एवं अमेरिका तक के लोगों से मुलाकात हुई जिन्होंने लाला व्यास जी से कहा, कि आप बहुत सुंदर श्रीमद् भागवत कथा करते हैं हम आपको बुक करना चाहते हैं जिसमें आप का 6 महीने का क्या रेट रहेगा 1 साल का क्या रेट रहेगा पैसे आपके कार्यक्रम हमारे। जिसमें श्री लाला व्यास जी का यह कहना था, सुनिए श्रीमान जी यह हमारी श्रीमद् भागवत कथा बिक्री के लिए नहीं है, नहीं हम बिक्री के लिए हैं और हां जिस दिन हमारी बोली लग रही होगी हमारी श्रीमद् भागवत कथा की बोली लग रही होगी हम बिक्री कर रहे होंगे उस दिन हम आपको जरूर याद करेंगे तब तक के लिए आप जा सकते हैं।
क्योंकि हकीकत यही है कि श्रीमद् भागवत कथा को कभी बिक्री नहीं करना चाहिए। जिस तरह से कथावाचक व्यास श्रीमद् भागवत कथा करने के लिए अपनी दक्षिणा बताते हैं, कि हम सवा लाख लेंगे कोई कहते हैं, हम 5 लाख लेंगे कोई कहते हैं, हम 11 लाख लेंगे आदि, हमारे स्टाफ का इतना खर्चा होगा, इस तरह से जो श्रीमद् भागवत कथा वाचक व्यास अपने मुख से अपनी दक्षिणा बताते हैं वह बिल्कुल ही गलत है। क्योंकि वह तो पैसे के लिए कथा करते हैं, उन्होंने तो इसे बिजनेस बना रखा है जो कि बेहद दुखद एवं शर्मनाक है।
बाल लीलाएं ( लाला व्यास जी का लालापन )
और लाला व्यास जी की आज भी बाल लीलाएं इस तरह की है कि जब कथा करते हैं, भागवत करते हैं, तो अद्भुत ज्ञान प्रवाहित होता है लेकिन जब वो अपने बाल लीलाओं पर आते हैं तो बच्चों के साथ में गेंद से खेलना, पतंग उड़ाना, अनेकों प्रकार के बच्चो के खेल खेलना, कार्टून देखना आदि, बच्चो के साथ पुर्णरूप से मगन हो जाते हैं। जीवन के हर आनंद को जी भरके जीते हैं, खुश रहते है, चेहरे से मुस्कराहट तो बिल्कुल हटती ही नहीं। क्युकी लाला व्यास जी का कहना है कि ये सृष्टि ईश्वर की बनाई हुई है, इस संसार में उपस्थित हर वस्तु उन्हीं की देन है, बस हमें इतना ध्यान रखना है की कौन वस्तु का कब, कहां, कैसे, प्रयोग करना है या नहीं करना है, क्योंकि ये दुर्लभ मनुष्य जन्म बार बार नहीं मिलता। बस भगवान के प्यार में, अपने जीवन को इस तरह से जीना है कि हमारे किए हुए किसी भी कर्म से ईश्वर नाराज न हों। इस तरह लाला व्यास जी अपना जीवन आनंद में जीते हैं।
अभी तक ( 2019 के अंतिम तक ) लगभग 600 श्रीमदभागवत कथा, कार्यक्रम और करीब 19 साल भागवत कथा का सफर बहुत ही सफलतापूर्वक रहा इसमें भारत के अनेकों प्रांत जैसे दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, महाराष्ट्र, एमपी, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पंजाब, गुजरात, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, हरियाणा, झारखंड, उत्तराखंड, मेघालय आदि राज्यों के अनेकों शहरों में, इसके अलावा नेपाल भ्रमण, कार्यक्रम, नेपाल के भी अनेकों राज्यों में अनेकों शहरों में भव्य कार्यक्रम किए। एवम् अनेकों देश – विदेशो में धार्मिक भ्रमण व कार्यक्रम (अनेकों व्यक्तियों के जीवन को ज्ञान भक्ति के माध्यम से सफल बनाया) के माध्यम से भक्तों में संतुष्टि पूर्ण कार्यक्रम संपन्न किए। लाला जी ने 1 महीने तक की श्रीमद भागवत कथा भी एक ही मंच से संपन्न की। एक पक्ष की जो 14, 15 दिन का होता है, कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष यानी पूरे एक पक्ष की श्रीमद भागवत कथा भी संपन्न कीं। सप्ताह कथा के कार्यक्रम जो 7 दिन का होता है जो कि शुकदेव, परीक्षित जी के माध्यम से चलन में है, मोक्ष कथा के माध्यम से सम्पन्न की। यानी अनुभव के आधार पर बहुत ही सुंदर सफर रहा, ईश्वर की कृपा से अनगिनत श्रद्धालु भक्तों को ईश्वर के कृपा सिंधु सरोवर में आनंद रस का पान कराया। मनुष्य (मानव) जाती का कल्याण उद्धार कर सही मायने में जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त किया।