क्यों है ठाकुर जी को सर्वाधिक प्रिय गोविन्द नाम

बांकेबिहारी, वृन्दावन विहारी, गोवर्धनधारी, माखन चोर, नंदकिशोर, कान्हा, कृष्णा, कन्हैया अनेको नाम है मेरे ठाकुर जी के, किन्तु इन अनेको नामो में से जो नाम ठाकुर जी को सर्वाधिक प्रिय है वह है “गोविन्द”। क्यों है ठाकुर जी को यह नाम इतना प्रिय ।

भगवान की गोवर्धन लीला के समय जब इंद्र देव वर्षा और विनाश का तांडव करके थक गए और वह वृन्दावन और वृन्दावन वासिओं का कुछ भी अहित नहीं कर पाए तब वह बहुत लज्जित हुए, वह भगवान लीला और उनकी शक्ति हो पहचान चुके थे, उनका अभिमान चूर-चूर हो चुका था और वह भगवान से अपने कृत्य के लिए क्षमा मांगने की सोंच रहे थे किन्तु साहस नहीं कर पा रहे थे तभी आकाश मार्ग में तेज प्रकाश उत्तपन्न हुआ और घंटियों की मधुर ध्वनि गूंजने लगी, कुछ ही देर में गौ माता सुरभि वहाँ प्रकट हुई और इंद्र को सम्बोधित करते हुए बोली “है देवराज मैंने अब तक आप को गौ वंश का रक्षक ही समझा था, किन्तु अब मेरा भ्रम टूट चुका है, आपने अपने अहंकार के कारण वृन्दावन के सम्पूर्ण गो वंश को समाप्त करने के लिए अपनी पूरी शक्ति का प्रयोग किये, किन्तु धन्य है भगवान श्री कृष्ण जिन्होंने गो वंश ही नहीं समस्त वृन्दावन वासिओं की आपके कोप से रक्षा की, सत्य में तो वही गौ रक्षक है, जिन्होंने गौ वंश के किसी भी प्राणी का तनिक भी अहित नहीं होने दिया, अतः में आपको गो वंश का रक्षक मानने से इंकार करती हूँ, में जा रही हूँ वृन्दावन की पावन धरती पर जहां भगवान श्री कृष्ण अपनी लीला कर रहे है, में जा रही हूँ, श्री हरी के चरणो की वंदना करने” ऐसा कह कर गौ माता सुरभी वृन्दावन की और चल दी ।

वृन्दावन पहुँच कर गौ माता सुरभी भगवान श्री कृष्ण के सम्मुख प्रकट हुई। गौ माता को अपने सम्मुख देख कर भगवान कृष्ण अत्यंत प्रसन्न हुए उन्होंने उनके आने का कारण पूंछा तब गौ माता सुरभी बोली “है स्वामी आप तीनो लोकों के पालन हार हैं, आज आपने अपनी लीला से वृन्दावन के समस्त गौ वंश की रक्षा की है, में आपके चरणो की वंदना करती हूँ, है नाथ आज में बहुत प्रसन्न हूँ। है स्वामी यू तो समस्त सृष्टि आपके संकेत मात्र से ही चलायमान है, आप ही समस्त सृष्टि की उत्त्पत्ति का कारण है, आप ही एक मात्र दाता है, समस्त संसार आप ही से उपभोग प्राप्त करता है, किन्तु है स्वामी आज में आपको कुछ देना चाहती हूँ, कृपया स्वीकार करें” तब भगवान प्रेम पूर्वक बोले “है माता आप मुझको अपनी माता के सामान ही प्रिय है, आप जो भी देंगी उसको प्राप्त करना मेरा सौभाग्य होगा” यह सुनकर गौ माता सुरभी अत्यंत प्रसन्न हुई और बोलीं “है स्वामी आपके इस संसार में अनेको नाम है

किन्तु आज में भी आपको एक नाम देना चाहती हूँ कृपया इसे स्वीकार करें” तब भगवान अत्यंत प्रसन्न होते हुए बोले “अवश्य माता, शीघ्र ही बताएं” गौ माता सुरभी बोलीं है नाथ आपने समस्त गौ वंश की रक्षा की इस लिए आज से आप गोविन्द नाम से पुकारे जायेंगे” गोविन्द नाम सुनकर भगवान कृष्ण प्रसन्ता से झूम उठे और गौ माता सुरभी से बोले ” है माता आपका दिया यह नाम अत्यंत सुन्दर है, में इसको सहर्ष स्वीकार करता हूँ, मेरे जितने भी नाम है उन सभी नमो में यह नाम मुझको सबसे अधिक प्रिय होगा, में आपको वचन देता हूँ कि आज से मेरा जो भी भक्त मुझको गोविन्द नाम से पुकारेगा, उसके सभी दुःख में स्वयं ही वहन करूँगा”।

भगवान और गौमाता सुरभी के मध्य यह वार्तालाप चल ही रहा था तभी वहां देवराज इंद्र भी आप पहुंचे उन्होंने भगवान से अपने अपराध के लिए क्षमा मांगी और गोविन्द नाम से भगवान की वंदना की भगवान ने प्रसन्न हो कर इन्द्र को क्षमा कर दिया। तत्पश्चात देवराज इंद्र और गौ माता सुरभी ने प्रभु से विदा ली।

इस प्रकार मेरे ठाकुर जी का एक और नाम पड़ा “गोविन्द”, क्योंकि भगवान कृष्ण को गायों से विशेष स्नेह था अतः गौ माता द्वारा दिया गया यह गोविन्द नाम भगवान को अत्यंत प्रिय है। जो भी भक्त भगवान को गोविन्द नाम से पुकारता है भगवान उसकी प्रार्थना को इस प्रकार स्वीकार करते है जैसे गौ माता उनको पुकार रही हो । इसलिए, भगवान के जिस भी भक्त को भगवान का आश्रय प्राप्त करना हो उसे जीवन के प्रत्येक क्षण में गोविन्द-गोविन्द नाम रटते रहना चाहिए।

कृष्ण गोविन्द गोपाल गाते चलो
मन को विषयों को हरदम हटाते चलो ॥
काम करते चलो नाम जपते चलो
हर समय कृष्ण का ध्यान धरते चलो
काम की वासना को मिटाते चलो
कृष्ण गोविन्द गोपाल गाते चलो .. ॥१॥
दुःख मे तड़पो मति सुख मे फूलो मति
प्राण जायें मगर नाम भूलो नहीं
मुरली वाले को मन से रिझाते चलो
कृष्ण गोविन्द गोपाल गाते चलो .. ॥२॥
देखना इन्द्रियों के न घोड़े बड़ें
इनपे हरदम ही संयम के कोड़े पड़ें
अपने रथ को सुमारग लगाते चलो
कृष्ण गोविन्द गोपाल गाते चलो .. ॥३॥
याद आयेगी उसको कभी न कभी,
कृष्ण दर्शन तो देंगे कभी न कभी ।
ऐसा विश्वास मन में जमाते चलो
कृष्ण गोविन्द गोपाल गाते चलो .. ॥४॥
नाम जप से ही लोगों ने पाई गती,
भक्तों ने तो इसी से करी विनती
नाम धन का खजाना बढ़ाते चलो,
कृष्ण गोविन्द गोपाल गाते चलो .. ॥५॥

बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय
जय जय श्री राधे।
श्री राधा- कृष्ण की कृपा से आपका दिन मंगलमय हो ।
श्री कृष्ण शरणम ममः