Kya Hamare Kanhaiya Koi Jadu Tona Janate Hain

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Kya Hamare Kanhaiya Koi Jadu Tona Janate Hain
Kya Hamare Kanhaiya Koi Jadu Tona Janate Hain

क्या हमारे कन्हैया कोई जादू टोना जानते हैं

“दाऊ भैया आपको ज्ञात है, क्या हमारे कन्हैया कोई जादू टोना जानते हैं। इनकी ओर सब इतने आकर्षित क्यों रहतें हैं?” कन्हैया के मित्र मनसुखा ने श्री कृष्ण को स्नेह भरी दृष्टि से निहारते हुये अति कौतुहल से पूछा। “नहीं मनसुखा जादू टोना नहीं, इस नटखट कन्हैया के पास कोई विद्या है जिससे यह सबका मन मोह लेता है”- बलराम जी ने अपने लघु भ्राता को और अधिक प्रेम से देखते हुये कहा- “सखा व गोप गोपियाँ ही नहीं, इसके निकट तो पशु पक्षी भी आने को ललायित रहतें हैं। गैया भी इसे देख कर हुँकार भरने लगतीं हैं। फल फूल, वृक्ष लतायें इसका सानिध्य पाते ही आन्नदित हो उठते हैं। इसकी वंशी की तान सुनकर तो गोपियाँ भी सारे कार्य छोड़कर भागी चली आती हैं”

तीसरे सखा ने मुस्काते हुये अपने प्रिय सखा कन्हैया की कमर पर अति स्नेह से घौल जमाते हुये कहा- “सखा वह जादू वह विद्या हमें भी सिखाओ न” अपने प्रिय सखाओं की बातें सुन कर नटखट कन्हैया मन ही मन गहन आनन्दित हुये और हँसने हुये अति रस मिश्रित वाणी में बोले- “भैया मुझमें कोई जादू व विद्या नहीं है, अपितु मुझे तो आप सब में यह सब दृष्टिगत होता है। मैंने तो आप सब ग्वाल बालों और पशु पक्षियों से ही यह सब सीखा है। यह जादू, यह विद्या इस प्रकृति में बिखरी पड़ी है बस आँकने वाली दृष्टि चाहिये। इस जड़ और चेतन से मैंनें इतना प्रेम पाया है कि मेरा रोम रोम प्रेममय हो गया है और इस प्रेम के कारण ही ग्वाल बाल गोपियाँ तो क्या, पशु पक्षी भी प्रतिपल मुझे घेरे रखने को तत्पर रहते हैं।

भैया, शास्त्रों में भी कहा गया है

“विद्या ददाति विनिमय”

अर्थात – विद्या विनय और प्रेम की शिक्षा देती है। ज्ञान और प्रेम रूपी भक्ति में यही अंतर है कि ज्ञान अंहकार के कारण दूसरे को निम्न समझता है और प्रेम-भक्ति प्रभु या प्राणी मात्र के समक्ष विनम्र बन कर नमन करने की प्रेरणा देती है।

श्री द्वारिकेशो जयते।

बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय।
जय जय श्री राधे।
श्री राधा- कृष्ण की कृपा से आपका दिन मंगलमय हो।
श्री कृष्ण शरणम ममः

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