Kumud Ban Ki Leela Hai Bhav Hai Sankhium Madhuram

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Kumud Ban Ki Leela Hai Bhav Hai Sankhium Madhuram
Kumud Ban Ki Leela Hai Bhav Hai Sankhium Madhuram

कुमुदवन वन की लीला है,भाव है सख्यम मधुरं

श्री कृष्ण ने अपने सखाओं से कहा की कल हम कुमुदवन में गायें चराने जायेगे तुम सब अपने अपने घरो से छाक लेकर आना। दूसरे दिन सब अपने अपने घरो से छाक लेकर कुमुदवन आये सब साखाओं ने गाय चराने के बाद जब भोजन को बैठे तो सब ने अपनी अपनी छाक खोली और भोजन किया। उनका एक सखा श्री दामा को आने में कुछ देर हो गयी और सब छाक खत्म हो गयी और वो भूखा ही रह गया।

वह कृष्णा से कहने लगा कि कन्हैया हम तो भूखे रह गए कृष्ण बोले भैया देख मेरी हथेली पर थोडा दही लगा है तू उसे ही चाट ले। श्री दामा सखा कृष्ण की हथेली को चाटने लगा,चाटने ही उसे ऐसे दिव्य अमृत-आनंद की प्राप्ति हुई कि मानों वह आनायास दिव्य लोक में विचरण कर रहा है। इस लीला के साक्षात् दर्शन परमानन्द दास जी को हुए और वह उसी लीला को एक कीर्तन में गाने लगे-

आज दधि मिठो मदन गुपाल आने पात
वनाए दोना दिए सवन को वाट
बहुत दिना हम वसे कुमुदवन कृष्ण तुम्हारे साथ
ऐसो स्वाद हम कवहू नहीं चाक्खयो
सुन गोकुल के नाथ

और इस प्रकार जब उस भक्त ने कृष्ण के श्रीअंग की हथेली को चाटा उसे पता ही नहीं की वो कृष्ण की हथेली को नहीं चाट रहा परंतु परं ब्रह्म परमेश्वर के अंग को चाट रहा है जिनका श्री अंग-

आनंद मात्र कर पाद मुखो दरादि:

वेदों में लिखा है

जिनका श्री अंग में मात्र आनंद रूप अमृत भरा हुआ है। जैसे एक शक्कर का हाथी बनायें तो उसका सब कुछ मधुर मीठा ही मीठा होगा ऐसे हमारे श्री कृष्ण परमात्मा का श्री अंग है।अतः अपने मित्र को अमृत का दान करने के लिए ये लीला भगवान् ने की।

बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय ।
जय जय श्री राधे।
श्री राधा- कृष्ण की कृपा से आपका दिन मंगलमय हो ।
श्री कृष्ण शरणम ममः

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