केदारनाथ ज्योतिर्लिंग भी भगवान शिव के १२ प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में आता है। यह उत्तराखंड में हिमालय की केदार नामक चोटी पर स्थित है। बाबा केदारनाथ का मंदिर बद्रीनाथ धाम के मार्ग पर स्थित है। केदारनाथ समुद्र तल से ३५८४ मीटर की ऊँचाई पर है। केदारनाथ का वर्णन स्कन्द पुराण एवं शिव पुराण में भी पाया जाता है। यह तीर्थ भगवान शिव को अति प्रिय है। जिस प्रकार का महत्व भगवान शिव ने कैलाश को दिया है, उसी प्रकार का महत्व शिव जी ने केदार क्षेत्र को भी दिया है।

Kedarnath Jyotirlinga Temple

शिखर के पूर्व की ओर अलकनन्दा के तट पर श्री बदरीनाथ स्थित हैं और पश्चिम में मन्दाकिनी के किनारे श्री केदारनाथ जी स्थित हैं। यह स्थान हरिद्वार से 150 मील और ऋषिकेश से 132 मील दूर है।

केदारनाथ मंदिर का निर्माण द्वापरयुग में पाण्डवों ने करवाया था। केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के विषय में यह चर्चा आती है कि भगवान श्री विष्णु जी के नर और नारायण नामक दो अवतार हुए हैं। उन्होंने पार्थिव शिवलिंग बनाकर श्रद्धा और भक्ति पूर्वक उसमें विराजने के लिए भगवान शिव से प्रार्थना की एवं शिव ने प्रसन्न होकर अपनी ज्योति, केदारनाथ ज्योतिर्लिंग प्रदान की और यह शिव लिंग ज्योतिर्लिंग बन गया।

पंचकेदार की कथा

भगवान केदारनाथ को पंचकेदार के नाम से भी जाना जाता है। पंचकेदार की कथा इस प्रकार है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इस लिए वे भगवान भोलेनाथ का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन भगवान भोलेनाथ उन लोगों से रुष्ट थे। भगवान शंकर के दर्शन के लिए सभी पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले। वे लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय पर आ पहुंचे।

लेकिन भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से भी अंतध्र्यान होकर केदार में जा बसे। दूसरी तरफ, पांडव भी लगन के पक्के थे, वे उनका पीछा करते-करते केदार भी पहुंच ही गए। भगवान शिव शंकर ने तब तक बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं के साथ जा मिले। पांडवों को संदेह हो गया था। अत: भीम ने अपना विशाल का्य रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर फैला दिया।

अन्य सभी गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। तभी भीम बलपूर्वक इस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंतध्र्यान होने लगा। भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग मजबूती से पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति एवं दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर सभी पांडवों को पाप मुक्त कर दिया।

उसी समय से भगवान भोलेनाथ बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान भोलेनाथ बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथ जी का प्रसिद्ध मंदिर है। शिव की दोनों भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसी कारण से इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है। इन सभी जगहों पर शिवजी के भव्य मंदिर बने हुए हैं।

Kedarnath Jyotirlinga Temple Location

Jyotirlinga Temples of Lord Shiva | Popular Shiva Temples in India

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