जीवन का प्रत्येक क्षण मूल्यवान
यह घटना उस समय की है, जब मानव का जन्म भी नहीं हुआ था। विधाता जब सूनी पृथ्वी को देखते, तो उनको उसमे कुछ न कुछ कमी नजर आती थी और वह दिन-रात सोच में पड़े रहते थे। आखिरकार विधाता ने चंद्रमा से मुस्कान ली, गुलाब से सुगंध, अमृत से माधुरी, जल से शीतलता, अग्नि से तपिश और पृथ्वी से कठोरता और फिर मिट्टी का एक पुतला बनाकर उसमें प्राण फूंक दिए। मिट्टी के पुतले में प्राण का संचार होते ही सब ओर रौनक हो गई और घरौंदे महकने चमकने लगे। देवदूतों ने विधाता की इस अद्भुत रचना को देखा, तो वह हैरान रह गए और विधाता से बोले, यह क्या है? विधाता ने कहा, यह जीवन की सर्वश्रेष्ठ रचना मानव है।
विधाता की बात पूरी भी न हो पाई थी कि एक देवदूत बीच में ही बोल पड़ा, की क्षमा कीजिए प्रभु, लेकिन यह बात हमारी समझ में नहीं आई। कि आपने इतनी मेहनत कर एक मिट्टी को आकार दे दिया, उसमें प्राण फूंक दिए। मिट्टी तो बहुत तुच्छ है, जड़ से भी जड़ है, मिट्टी के बजाय अगर आप सोने अथवा चांदी के आकार में यह सब करते तो अच्छा रहता। देवदूत की बात पर विधाता मुस्करा कर बोले, यही तो जीवन का बहुत कठीन रहस्य है। मिट्टी के शरीर में मैंने संसार का सारा सुख-सौंदर्य, सारा वैभव डाल दिया है। जड़ में आनंद का चैतन्य फूंक दिया है, इसका जैसे चाहे बैसे उपयोग करो। जो मानव मिट्टी के इस शरीर को महत्व देगा, वह मिट्टी की जड़ता भोगेगा। जो इससे ऊपर उठेगा, उसे परत-दर-परत आनंद मिलेंगा।
इसलिए जीवन का प्रत्येक एक-एक क्षण मूल्यवान है, तुम मिट्टी के अवगुणों को देखते हो, उसके गुणों को कभी नहीं। मिट्टी में ही अंकुर फूटते हैं और मेहनत से फसल लहलहाती है, इसलिए मैंने मिट्टी के शरीर को कर्मक्षेत्र बनाया है।
श्री द्वारिकेशो जयते।
बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय।
जय जय श्री राधे।
श्री राधा- कृष्ण की कृपा से आपका दिन मंगलमय हो।
श्री कृष्ण शरणम ममः