ठाकुर श्री गोवर्धन गिरिराज जी मुखारविंद मंदिर, जतीपुरा, गोवर्धन
यह दर्शन गोवर्धन पर्वत (जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को इंद्र के कोप से बचाने के लिए अपनी सबसे छोटी उंगली के नख पर धारण किया था) के हैं। वल्लभकुल संप्रदाय के अनुसार यह गिरिराज गोवर्धन का मुखारविंद (श्रृंगार स्थली) है।
यहां पर प्रत्येक दिन छप्पन भोग, छत्तीसों व्यंजन, अन्नकूट आदि भोग एवम अनेकों विशेष मनोरथ पूजा, सेवा आदि का आयोजन होता रहता है। यहां प्रतिदिन हजारों भक्त आते हैं एवं दुग्ध व पुष्प इत्यादि पदार्थों को अर्पित कर पूजन करते हैं।
एक साधु जो इस स्थल पर रहते थे उनका एक अन्य नाम ‘यति’ था। लोगों ने इसी कारण इस स्थान को ‘यति’ का निवास-स्थल कहना प्रारंभ कर दिया, इस कारण इस स्थान का नाम जतिपुरा पड़ा। व्रज भाषा में ‘य’ को ‘ज’ कहते हैं।
अब यह ‘वल्लभ सम्प्रदाय’ का प्रमुख केंद्र है। श्रीवल्लभाचार्य जी एवं विट्ठलनाथजी की यहाँ बैठकें हैं।
अन्य निकटतम दर्शनीय स्थल :-
नवल कुंड, अप्सरा कुंड, श्रीनाथ जी मंदिर, राघव पंडित की गुफा, इंद्र कुंड, इंद्र मान भंग इंद्र पूजा मुखारविंद, सुरभि कुंड, ऐरावत कुंड, हरजी कुंड, जतीपुरा मुखारविंद, ऊपर पहाड़ पर श्रीनाथ जी, मार कुंड, सूर्य कुंड, रुद्र कुंड, जान अजान वृक्ष, बिलछु कुंड, आगे ‘गुलाल कुण्ड’, ‘गाठौली’, ‘टोड का घना’ है। यहाँ पर प्रसिद्ध ‘सिंदूरी शिला’ है, जिसके विषय में कहा जाता है कि यहाँ राधा रानी ने सिंदूर लगाया था। आदि..