जब भगवान श्रीकृष्ण ने की नंदबाबा की रक्षा

एक बार नंद बाबा और गोपों ने शिवरात्रि के अवसर पर बड़ी उत्सुकता, कौतूहल और आनंद से बैलों से जुती हुई गाड़ियो पर सवार होकर अम्बिकावन की ओर चल पड़े। वहां उन सभी ने सरस्वती नदी में स्नान किया और सर्वान्तर्यामी पशुपति भगवान शंकर जी तथा भगवती अम्बिका जी का बड़ी भक्ति से और अनेक प्रकार की सामग्रियों के द्वारा पूजन किया। उन्होंने आदर पूर्वक ब्राह्मणों को गाये, सोना, वस्त्र, मधु और मधुर अन्न दिए तथा उन्हें खिलाया-पिलाया। वे सभी लोगो सिर्फ ये ही चाहते थे कि इनसे देवाधिदेव भगवान शंकर उन पर प्रसन्न हों। उस दिन परम भाग्यवान नंद, सुनंद और आदि गोपों ने उपवास कर रखा था, इसलिए वे सब केवल जल पी कर रात के समय सरस्वती नदी के तट पर ही सो गए।

उस अम्बिकावन में एक बड़ा भारी अजगर रहता था। उस दिन वह बहुत भूखा था। वह उधर ही आ निकला और उसने सोए हुए नंदबाबा को पकड़ लिया। अजगर के पकड़ जाने पर नंद जी चिल्लाने लगे, बेटा कृष्ण, दौड़ो ! यह अजगर मुझे निगल रहा है मैं तुम्हारी शरण में हूं। जल्दी मुझे इस संकट से बचाओ। नंदबाबा की पुकार सुन कर सभी गोप एकाएक उठ खड़े हुए और उन्हें अजगर के मुंह में देख कर घबरा गए। अब वे लाठियों से उस अजगर को मारने लगे किन्तु लाठियों से मारे जाने तथा जलने पर भी अजगर ने नंद बाबा को छोड़ा नहीं।

इतने में भक्त वत्सल भगवान श्री कृष्ण ने वहां पहुंच कर अपने श्री चरणों से उस अजगर को छू भर दिया। भगवान के श्रीचरणों का स्पर्श पाते ही अजगर के सारे पाप भस्म हो गए और वह उसी क्षण अजगर का शरीर छोड़कर एक रूपवान युवक बन गया। वह सोने के हार और सुंदर वस्त्र पहने हुए था तथा उसके शरीर से दिव्य ज्योतिया निकल रही थी। वह प्रणाम करने के बाद हाथ जोड़कर भगवान के सामने खड़ा हो गया तब भगवान ने उससे पूछा, तुम कौन हो? तुम्हारे अंग-अंग से ये कैसी सुंदरता फूटी रही है। तुम देखने में बड़े अद्भुत जान पड़ते हो। उन्होंने पूछा तुम्हें अजगर योनि क्यों प्राप्त हुई थी? तब उसने भगवान श्रीकृष्ण को बताया, भगवन मैं पहले एक विद्याधर था। मेरा नाम सुदर्शन था। मेरे पास सौंदर्य तो था ही, लक्ष्मी भी बहुत थी। इसलिए मैं विमान पर चढ़कर यहां-वहां घूमता रहता था।

एक दिन मैंने कुछ कुरूप ऋषियों को देखा। तब मैंनें अपने सौंदर्य के घमंड में उनकी हंसी उड़ाई। मेरे उस अपराध से कुपित होकर उन्होंने मुझे अजगर योनि में जाने का श्राप दे दिया था। वह मेरे पापों का फल था पर आज आपने अपने चरण कमलों से मुझे स्पर्श किया तो मेरे सारे अशुभ नष्ट हो गए। समस्त पापों का नाश करने वाले प्रभु, जो लोग जन्म-मृत्यु संसार से भयभीत होकर आपके चरणों की शरण ग्रहण करते हैं, उन्हें आप समस्त भयों से मुक्त कर देते हैं। अब मैं आपके श्रीचरणों के स्पर्श से श्राप से मुक्त हो गया हूं और अपने लोक में जाने की अनुमति चाहता हूं। मैं आपकी शरण में हूं। समस्त लोकेश्वरों के परमेश्वर मुझे आज्ञा दीजिए।

आपके स्पर्श मात्र से मैं ब्राह्मणों के श्राप से मुक्त हो गया हूँ, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि जो भी प्राणी आपके नामों का उच्चारण करता है वह स्वयं को तथा समस्त श्रोताओं को भी तुरंत पवित्र कर देता है। और फिर मुझे तो आपने स्वयं अपने चरणकमलों से स्पर्श किया है। तब भला, मेरी मुक्ति में क्या संदेह हो सकता है! तब इस प्रकार सुदर्शन ने भगवान श्रीकृष्ण जी से विनती कर परिक्रमा की और प्रणाम किया। और फिर उनसे आज्ञा लेकर वह अपने लोक को चला गया और नंदबाबा भी इस भारी संकट से छूट गए।

जब ब्रजवासियों ने श्रीकृष्ण का यह अद्भुद प्रभाव देखा, तो उन्हें बड़ा विस्मय हुआ। उन लोगों ने उस क्षेत्र में जो नियम ले रखे थे, उनको पूर्ण करके वे बड़े आदर और प्रेम से श्री कृष्ण की उस लीला का गान करते हुए पुन: ब्रज में लौट आए।

श्री राधे श्री राधे श्री राधे