हरी में और हरिनाम में कोई फर्क नहीं
श्री राधा हरिनाम……हरी में और हरिनाम में कोई फर्क नहीं है बल्कि हरी से भी बड़ा हरी का नाम है। समझो आप नाम जाप कर रहे हो तो आप केवल जाप नहीं बल्कि हरी की सेवा कर रहे हो कैसे ?
रसिकजन जब राधा राधा गाते है तो उनके भाव की एक अवस्था ऐसी होती है की वो चरण पखार रहे है। चरण दबा रहे है। सेवा कर रहे। युगल किशोर के चरणों को चूम रहे है। सेवा कर रहे है। इसलिए नाम जाप हरिनाम करना केवल मात्र आप जाप नहीं सेवा कर रहे है प्रिया प्रियतम की।
हरिनाम इतना जरूरी क्योँ ?
आप के घर में एक बड़ा ही गन्दा मैल लगा हुआ कपडा है। हा देखा ही नहीं काफी दिन से पड़ा रहा एक कोने में धयान ही नहीं गया ओह चलो आज धो देती हूँ। कहाँ गया सर्फ हाँ जी लो अब चमक गया अब कुछ पहनने लायक हुआ मेरे।
जरा समझो
वो कपडा जो न जाने कितने जन्मों से भगवान मलतब अपने मालिक की आँखों से विमुख था और मैला होता गया न जाने कितने जन्मों जन्मों की मेल है इस मन पर उसे साफ़ करना है और उसे साफ़ करने का सर्फ केवल हरिनाम महामंत्र है जिसको जीवा के सहारे से जितना मन की कोमल सतह पे लगाओ गे उतना ही मन साफ़ होगा। मन रुपी कपडा साफ़ होगा तो ही मालिक हमारे ठाकुर पहन पायेगे हम को अपना पायेगे भगवान को पाना कोई बड़ी बात नहीं है बस है तो मन को सरल बना लो सब परदे हट जायेगे (चैतन्य चरित्रामृत)
वर्तमान समय में हरिनाम जाप ही जरूरी क्योँ
इस कलिकाल में केवल नाम सर्वोपरि है भव सागर से सरलता से पार जाने क लिए। नाम और नामी में कोई भेद नहीं जिसने नाम ले लिया समझो उसने भगवन को ही ले लिया क्योँ की कोई फर्क नहीं है। अतः जो नाम ले वो प्रभु का प्यारा नाम भी प्रभु की कृपा से ही संभव है। सदैव जपो हरिनाम करो हरिनाम कराओ।
बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय।
जय जय श्री राधे।
श्री राधा- कृष्ण की कृपा से आपका दिन मंगलमय हो।
श्री कृष्ण शरणम ममः