Govardhan Parvat Ki Parikrama Kyu ?

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Jatipura Mukharvind Temple Govardhan
Jatipura Mukharvind Temple Govardhan

गोवेर्धनजी पर्वत की परिक्रमा क्यों ?

श्रीकृष्ण जी ने गोवर्धन पर्वत को “भगवान का रूप” बताया और देवराज इन्द्र के स्थान पर उनकी पूजा करने के लिये सभी को आज्ञा दी। आज भी गोवर्धन पर्वत चमत्कारी है और वहां जाने वाले हर व्यक्ति की सभी इच्छायें पूर्ण होती हैं। गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने वाले व्यक्ति के जीवन में कोई कमी नहीं आती, क्योंकि वहां ईश्वर की कृपा होती है।

Shri Govardhan Parvat Darshan Govardhan
Shri Govardhan Parvat Darshan Govardhan

श्री गोवर्धन गिरिराज जी का गोलोक धाम से पृथ्वी पर आने की कथा

गर्गसंहिता अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लेने के पूर्व राधाजी से साथ चलने का निवेदन किया। इस पर राधाजी ने कहा कि मेरा मन पृथ्वी पर “गोवर्धन पर्वत” के बिना नहीं लगेगा। यह सुनकर श्रीकृष्ण ने अपने हृदय की ओर दृष्टि डाली जिससे एक तेज निकल ब्रज भूमि पर चला गया। शास्त्रों के अनुसार यह पर्वत रत्नमय, झरनों, कदम्ब आदि वृक्षों से भरा हुआ था एवं कई अन्य सामग्री भी इसमें उपलब्ध थी। तब राधा जी ने श्रीकृष्ण जी के साथ पृथ्वी पर अवतार धारण किया।

Govardhan Parikrama Marg
Govardhan Parikrama Marg

हम श्री गिरिराज जी की परिक्रमा क्यों करते हैं ?

अज्ञानता अथवा अनभिज्ञता से किया हुआ अलौकिक कार्य भी सुन्दर फल का ही दाता है , तो यदि उसका स्वरूप एवं भाव समझकर हम कोई अलौकिक कार्य करें तो उसका बाह्याभ्यान्तर फल कितना सुन्दर होगा, यह विचारणीय है।

परिक्रमा का भाव समझिये। हम जिसकी परिक्रमा कर रहें हों, उसके चारों ओर घूमते हैं। जब किसी वस्तु पर मन को केन्द्रित करना होता है तो उसे मध्य में रखा जाता है, वही केन्द्र बिन्दु होता है। अर्थात् जब हम श्री गोवर्धन गिरिराज जी की परिक्रमा करते हैं तो हम उन्हें मध्य में रखकर यह बताते हैं कि हमारे ध्यान का पूरा केन्द्र आप ही हैं और हमारे चित्त की वृत्ति आप में ही है और सदा रहे। दूसरा भावात्मक पक्ष यह भी है कि जब हम किसी से प्रेम करते हैं तो उसके चारों ओर घूमना हमें अच्छा लगता है, सुखकारी लगता है। हिंदू धर्म की मान्यता अनुसार अपने इष्ट देव भगवान ईश्वर की पूजा करने के पश्चात परिक्रमा करना अनिवार्य होता है।

श्री गोवर्धन गिरिराज जी के चारों ओर घूमकर हम उनके प्रति अपने प्रेम और समर्पण का प्रदर्शन करते हैं। परिक्रमा का एक कारण यह भी है कि श्री गिरिराज जी के चारों ओर सभी स्थलों पर श्रीठाकुरजी ने अनेक लीलायें की हैं जिनका भ्रमण करने से हमें उनकी लीलाओं का अनुसंधान रहता है।

Shri Giriraj Ji Maharaj Temple Govardhan Uttar Pradesh
Shri Giriraj Ji Maharaj Temple Govardhan Uttar Pradesh

परिक्रमा के चार मुख्य नियम होते हैं जिनका पालन करने से परिक्रमा अधिक फलकारी बनती है।

मुखे भग्वन्नामः, हृदि भगवद्रूपम् ।
हस्तौ अगलितं फलम्, नवमासगर्भवतीवत् चलनम् ।।

अर्थात् मुख में सतत् भगवत्-नाम, हृदय में प्रभु के स्वरूप का ही चिंतन, दोनों हाथों में प्रभु को समर्पित करने योग्य ताजा फल और नौ मास का गर्भ धारण किये हुई स्त्री जैसी चाल, ताकि अधिक से अधिक समय हम प्रभु की टहल और चिंतन में व्यतीत कर सकें।

श्रीगिरिराजजी पाँच स्वरूप से हमें अनुभव करा सकते हैं, दर्शन देते हैं। पर्वत रूप में, सफेद सर्प के रूप में, सात बरस के ग्वाल/बालक के रूप में, गाय के रूप में और सिंह के रूप में।

Jatipura Mukharvind Temple Govardhan
Jatipura Mukharvind Temple Govardhan

बृजबासियो का कहना है की

श्री गोवर्धन गिरिराज जी पाँच स्वरूप से हमें अनुभव करा सकते हैं, दर्शन देते हैं। पर्वत रूप में, सफेद सर्प के रूप में, सात बरस के ग्वाल/बालक के रूप में, गाय के रूप में और सिंह के रूप में।

श्री गिरिराज जी का ऐसा सुन्दर और अद्भुत स्वरूप है कि इसे जानने के बाद कौन यह नहीं गाना चाहेगा कि

श्री गिरिराज वास में पाऊं, ब्रज तज बैकुंठ ना जाऊं।।

राजस्थान श्री नाथद्वारा में श्रीनाथजी व उत्तर प्रदेश जिला मथुरा ब्रज चौरासी कोस वृंदावन धाम में श्री गोवर्धन गिरिराज जी दोनों एक ही हैं।

जय गिरिराज जी की
गिरिराज महाराज की जय
गोवर्धन नाथ की जय

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