गिरिधारी भी नही टाल सकते गुरू की बात
वृंदावन के एक आश्रम मे एक संत के पास कुछ शिष्य रहते थे, उनमे से एक शिष्य मंद बुद्धि का था। गुरु देव ने सभी शिष्यों को बुलाया और सभी से कहा आप सभी एक माहा के लिए ब्रज मे अलग-अलग स्थान पर जाकर रहने की आज्ञा दी और मंद बुद्धि से भी बरसाने में जाकर रहने को कहा। मंद बुद्धि शिष्य ने बाबा से पुछा बाबा मेरे रहने खाने की व्यवस्था कौन करेगा।
बाबा ने बड़े हंस कर कह दिया की राधा रानी, कुछ दिनों बाद सभी शिष्य एक – एक करके लौट आए पर वो मंद बुद्धि शिष्य नही आया। बाबा को चिंता हुई के दो मास हो गए पर मंद बुद्धि बालक नही आया मुझे जाकर देखना चाहिए, बाबा अपने शिष्य की सुध लेने के लिए बरसाने में आ गए। बाबा ने देखा की एक सुन्दर सी कुटिया के बाहर एक सुन्दर बालक बहुत ही सुन्दर भजन कर रहा है।
बाबा ने सोचा क्यों ना इन्ही बालक से पुछा जाए… बाबा जैसे ही उनके पास गए वो बालक उठ कर बाबा के चरणों में गिर गया और बोला आप आ गए गुरु देव। बाबा ने उस बालक को देखा और अपने उस शिष्य से पुछा ये सब कैसे तु ठीक कैसे हो गया। शिष्य बोला बाबा आपके ही कहने से किशोरी जी ने मेरे पर इतनी कृपा की मेरे रहने खाने पीने की व्यवस्था की और ठीक करके मुझे भजन करना भी सिखाया।
बाबा अपने शिष्य पर किशोरी जी की कृपा को बरसता देख खुब प्रसन्न हुए और मन ही मन सोचने लगे, के मेरे कारण किशोरी जी को कितना कष्ट हुआ। उन्होंने मेरे शब्दो का मान रखा और मेरे शिष्य पर अपनी सारी कृपा उडेल दी, इसलिए कहते है की गुरू की बात को गिरिधारी भी नही टाल सकते..!!
जय जय श्री राधे