दानघाटी मंदिर गोवेर्धन
जब महाराज कंस को आकाशवाणी योगमाया देवी द्वारा समझ आ गया कि मेरी मृत्यु – यानी मुझे मारने वाला ब्रज में कहीं अन्यत्र ही पैदा हो चुका है। तब से अनेकों युक्तियां कंस के मस्तिष्क में चलती रहती। जैसे ब्रज में उत्पन्न होने बाला दूध, दही, मक्खन (पौष्टिक आहार) खाकर कहीं मेरा शत्रु मुझे अधिक शक्तिशाली न बन जाए। तो यह ब्रज की आम जनमानस में खबर पहुंचा दी कि ब्रज में उत्पन्न होने वाला सारा दूध, दही, मक्खन आदि मेरे मथुरा राजमहल में आना चाहिए।
सभी ब्रजवासी बहुत अधिक भय मानते थे दुष्ट कंस से तो सभी उसके आदेश का पालन करने लगे। परंतु हमारे श्रीकृष्ण कन्हैया जी ने विचार किया और अपने मित्र – परिकर के साथ श्रीगोवर्धन गिरिराज जी के उस मार्ग पर जहां से समस्त गोपी अपनी – अपनी मटकी में सारा दूध, दही, माखन आदि लेकर जाती वहीं अपना डेरा जमा लिया।अब जो भी गोपी वहां से निकलती सबसे कहते राजा कंस के पास जाने से पहले हमें यहां टैक्स, कर, दान देना होगा।

तभी हम आगे जाने देंगे। बेचारी गोपियों ने नंद बाबा से शिकायत की धमकी दी। राजा कंस को बताने की धमकी दी। कन्हैया जी को अनेकों तरीके से समझाने की कोशिश की। परंतु कन्हैया जी नहीं माने। जबरदस्ती जाने पर उनकी मटकी पत्थर से तोड़ दी। तो गोपियों ने सोचा कोई बात नहीं कन्हैया तुझे जितना लेना है ले ले। और फिर ये सिलसिला चला की सबकी मटकी का माखन स्वयं खाकर, अपने मित्रों को देकर, वानर (बंदर) सेना को देकर भी अगर कुछ बचता तो उसे फैला देते। लेकिन मथुरा नहीं जाने देते।
यानी गोवर्धन गिरिराज जी धाम में इस स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण ने दानिराय का स्वरूप धारण किया। और इस स्थान का नाम पड़ा दानघाटी।