चिंतामणी विनायक पुणे

अष्टविनायक में पांचवें गणेश हैं चिंतामणि गणपति। चिंतामणी का मंदिर महाराष्ट्र राज्य में पुणे ज़िले के हवेली तालुका में थेऊर नामक गाँव में है। भगवानगणेश का यह मंदिर महाराष्ट्र में उनके आठ पीठों में से एक है। यहाँ गणेश जी ‘चिंतामणी’ के नाम से प्रसिद्ध हैं, जिसका अर्थ है कि “यह गणेश सारी चिंताओं को हर लेते हैं और मन को शांति प्रदान करते हैं”। मंदिर के पास ही तीन नदियों का संगम है। ये तीन नदियां हैं भीम, मुला और मुथा। यदि किसी भक्त का मन बहुत विचलित है और जीवन में दुख ही दुख प्राप्त हो रहे हैं तो इस मंदिर में आने पर ये सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि स्वयं भगवान ब्रहमा ने अपने विचलित मन को वश में करने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की थी।

Chintamani Vinayak

स्थिति

भगवान गणेश का यह मंदिर पुणे-सोलापुर महामार्ग पर पुणे से 22 किलोमीटर की दूरी पर थेऊर गाँव में स्थित है। इस प्रकार यह मंदिर पुणे के नजदीक स्थित है। यहाँ का वातावरण भी हृदय को आनंद से भर देता है। इस पवित्र भूमि पर आते ही मन की सारी परेशानियाँ दूर हो जाती हैं। यह मंदिर एक ऐसा स्थान है, जहाँ चिंतामणि रत्न की प्राप्ति साकार रूप मे होती है।

मंदिर तथा मूर्ति

थेऊर गाँव तीन नदियों- मुला, मुठा और भीमा के संगम पर स्थित है। इस मंदिर के पीछे वाला तालाब ‘कडंतीर्थ’ कहलाता है। मंदिर के प्रवेश द्वार का मुख उत्तर की ओर है। इसका बाहरी कक्ष, जो लकड़ी का बना है, वह इतिहास में प्रसिद्ध मराठा पेशवाओं द्वारा बनवाया गया था। इस मंदिर के विषय में यह भी कहा जाता है की मुख्य मंदिर श्री मोरया गोसावी के परिवार के धरणीधर महाराज देव ने बनवाया था।

Chintamani Vinayak

माधवराव पेशवा ने लकड़ी का बाहरी कक्ष मंदिर के निर्माण के लागभाग सौ साल बाद बनवाया था। चिंतामणी मंदिर में भगवान गणेश की जो मूर्ति स्थापित है, उसकी सूड़ बायीं ओर है और इसकी आँखों में हीरे जड़े हैं। मूर्ति का मुँह पूरब की ओर है। कहा जाता है की गणेशजी को चिंतामणी नामक हीरा, संत कपिला के लिये, इस जगह पर मिला था। संत कपिला ने वह हीरा गणेशजी के गले में पहना दिया। इसलिये यहाँ गणेश का नाम ‘चिंतामणी’ पड़ा।

यह सब घटनाक्रम एक कदम्ब वृक्ष के नीचे हुआ था, इसीलिए थेऊर गाँव पहले कडंब नगर के नाम से जाना जाता था। थेऊर के चिंतामणी पेशवा माधवराव प्रथम के कुल देवता थे। अगर आपका मन विचलित रहता हो और चिंताएं आपको घेरे रहती है तो आप थेयूर आए और श्री चिंतामणि गणपति की पूजा करें । सभी चिंताओं से मुक्ति मिल जाएगी।

Chintamani Vinayak

कथा

राजा अभिजीत और रानी गुनावती ने पुत्र प्राप्ति के लिए ऋषि वैशम्पायन की सलाह पर कई वर्षों तक तप किया । उन्हें बेटा हुआ ,जिसका नाम गणराजा रखा गया ,जो बहुत बहादुर ,पर गुस्सेवाला था । वह गरीबों को परेशान करता और साधुओं की तपस्या में विघ्न डालता था। एक बार वह अपने मित्रों के साथ शिकार पर गया। उस जंगल में कपिल ऋषि का आश्रम था। ऋषि ने गण का स्वागत किया तथा उसे और उसके मित्रों को भोजन पर आमंत्रित किया।

भगवान इंद्र ने ऋषि कपिला को चिंतामणि दी थी ,जिससे जो मांगो ,वह पूरी होती थी । कपिल ऋषि के आश्रम को देखकर गण हंसने लगा और बोला “आपके जैसा गरीब साधू इतने सारे लोगों के भोजन की व्यवस्था कैसे करेगा?” इस पर ऋषि कपिल ने अपने गले के हार से “चिंतामणि (इच्छा पूर्ण करने वाला रत्न)” निकाला और उसे लकड़ी के एक छोटे मेज़ पर रख दिया।

Chintamani Vinayak

उन्होंने उस मणि को नमस्कार किया तथा प्रार्थना की तथा देखते की देखते वहां एक रसोईघर तैयार हो गया। प्रत्येक व्यक्ति को बैठने के लिए चन्दन का आसन बन गया और प्रत्येक व्यक्ति को चांदी की थाली में कई स्वादिष्ट पकवान परोसे गए। गण और उसके मित्रों ने इस स्वादिष्ट भोजन का आनंद लिया। खाने के बाद गण ने कपिल ऋषि से जादुई रत्न माँगा परंतु ऋषि ने मना कर दिया क्योंकि वे गण के क्रूर स्वभाव से परिचित थे।

अत: गण ने ऋषि के हाथ से बलपूर्वक वह रत्न हथिया लिया। उसके बाद ऋषि कपिल ने भगवान गणपति की आराधना की। गणपति ऋषि की भक्ति से प्रसन्न हुए तथा उन्होंने गण को शिक्षा देने का निर्णय लिया। गण ने विचार किया कि रत्न पुन: प्राप्त करने के लिए कपिल ऋषि उस पर हमला करेंगे अत: उसने ही कपिल ऋषि पर आक्रमण कर दिया।

गणपति की कृपा से जंगल में एक बड़ी सेना तैयार हो गई और इस सेना ने गण के लगभग सभी सैनिकों को ख़त्म कर दिया। अब गणपति स्वयं युद्ध में उतरे। गण ने गणपति पर बाणों की बौछार से आक्रमण किया; परंतु गणपति ने हवा में ही बाणों को नष्ट कर दिया।

Chintamani Vinayak

उसके बाद गणपति ने अपना परशु (गणपति का अस्त्र) गण पर फेंका और उसे मार डाला। गण के पिता राजा अभिजीत युद्धक्षेत्र में आये और उन्होंने गणपति को नमस्कार किया। उन्होंने कपिल ऋषि को ‘चिंतामणि’ वापस कर दिया तथा गणपति से अपने पुत्र के लिए माफी माँगी तथा उसकी मृत्यु के बाद उसे मुक्ति देने की प्रार्थना की।

दयालु गणपति भगवान ने उनकी प्रार्थना सुन ली।इस प्रकार गणपति ने चिंतामणि पुन: प्राप्त करने के लिए कपिल ऋषि की सहायता की और तब से उन्हें चिंतामणि भी कहा जाने लगा। भगवान गणेश और गणराजा के बीच युद्ध एक कदंब के पेड़ के पास हुआ ,तबसे इस गांव का नाम कदंब तीर्थ पद गया।

जय गणपति बप्पा
जय अष्टविनायक
जय चिंतामणी विनायक
जय जय श्री राधे।
श्री राधा- कृष्ण की कृपा से आपका दिन मंगलमय हो ।
श्री कृष्ण शरणम ममः

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