बृज में सांझी उत्सव कब होता है और किसने की इसकी शुरुआत

भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से सांझी उत्सव प्रारंभ होता है जो कि भाद्रपद कृष्ण अमावस्या तक चलता है। मन्दिरों में इन दिनों सांझी सजाई जाती है। गांवों की बालिकायें सांझी का खेल खेलती हैं। इसमें अनेक रंग बिरंगे पुष्पों के द्वारा सांझी की रचना की जाती है एवं एकादशी से रंगों की सांझी बनाई जाती है। सांझी कई प्रकार की होती है जैसे – फूलों की सांझी, रंगों की सांझी, गाय के गोबर की सांझी, पानी पर तैरती सांझी। यह उत्सव श्री प्रिया जू से सम्बंधित है इसलिए रसिकों का इस उत्सव पर अधिक ममत्व है। राधारानी अपने पिता वृषभानु जी के आंगन में सांझी सजाती थी ।सांझी के रूप में श्री राधेरानी संध्या देवी का पूजन करती हैं। सांझी की शुरूआत राधारानी द्वारा की गई थी।

Brij Mein Sanjhi Utsav Kab Hota Hai Aur Kisne Ki Isaki Shuruat

सर्वप्रथम भगवान कृष्ण के साथ वनों में उन्होंने ही अपनी सहचरियों के साथ सांझी बनायी। वन में आराध्य देव कृष्ण के साथ सांझी बनाना राधारानी को सर्वप्रिय था। तभी से यह परंपरा ब्रजवासियों ने अपना ली और राधाकृष्ण को रिझाने के लिए अपने घरों के आंगन में सांझी बनाने लगे।

फूलन बीनन हौं गई जहाँ जमुना कूल द्रुमन की भीड़,
अरुझी गयो अरुनी की डरिया तेहि छिन मेरो अंचल चीर।
तब कोऊ निकसि अचानक आयो मालती सघन लता निरवार,
बिनही कहे मेरो पट सुरझायो इक टक मो तन रह्यो निहार।
हौं सकुचन झुकी दबी जात इत उत वो नैनन हा हा खात,
मन अरुझाये बसन सुरझायो कहा कहो अरु लाज की बात।
नाम न जानो श्याम रंग हौं , पियरे रंग वाको हुतो री दुकूल,
अब वही वन ले चल नागरी सखी फिर सांझी बीनन को फूल।

अर्थ

ये है की श्री राधिका जी कहती हैं की मैं सांझी बनाने के लिए यमुना के तट पर फूल बीनने के लिए गयी और वहाँ पर मेरी साड़ी एक पेड में उलझ गयी तभी कोई अचानक वहाँ आ गया और उसने मेरी साड़ी सुलझा दी और वो मुझे लगातार निहारने लगा और मैं शरमा गयी लेकिन वो देखता रहा और उसने मेरे पैर पर अपना सिर रख दिया। ये बात कहने में मुझको लाज आ रही है लेकिन वो मेरे वस्त्र सुलझा कर मेरा मन उलझा गया। मैं उसका नाम नहीं जानती पर वो पीला पीताम्बर पहने था और श्याम रंग का था। हे सखी अब मुझे वो याद आ रहा है इसलिये मुझकों उस वन में ही सांझी पूजन के लिए फूल बीनने को फिर से ले चलो। इस पद में ठाकुर जी और राधा जी के प्रथम मिलन को समझाया गया है इसलिये इसको सांझी के समय गाते हैं।

यह साँजी की सूचि

भाद्रपद-शुक्लपक्ष-पूनम से
भाद्रपद-कृष्णपक्ष-अमाष तक

हवेली में भोग संध्या से लेकर सुबह मंगला आरती तक व्रजयात्रा क्रम आवे है।

पूनम~मधुवन- कूमुदवन
एकम~शांतनकुण्ड -बहूलावन
बीज~राधाकुंड -दानघाटी
त्रीज~चाँद सरोवर -आन्यौर
चोथ~ जतीपुरा -गुलाबकुंड
पाचम~कामवन -श्रीकुंड
छठ~बरसाना ~गहेवरवन
सातम~नंदगाव -संकेतवन
आठम~कोटवन -शेषसाइ
नोम~चिरघाट -बच्छवन
दसम~वृन्दावन -बंसीबट
एकादशी~महावन -ब्रम्हांड घाट
द्वादशी ~गोकुल -रमणरेती
तेरस~मथुरा -विश्रामघाट
चौदस~कल्पवृक्ष -कामधेनु
अमावस~कोट की आरती

4 प्रकार की साँजी आती है।

पुष्प फूल - पुष्प की साँजी कमल बेल फूल रंगबे रंगी साँजी सजा के श्री प्रभु बिराजते है। फूल की साँजी स्वामिनी जी के भाव से सजाई जाती है।

केले के पत्ते से - इसमे व्रज चोरियासी कोस की ब्रजयात्रा की सुन्दर लीला कलात्मक ढंग से सजाई जाती है। यह चन्द्रावली जी से भाव से सजाई जाती है।

सफ़ेद वस्त्र - सफ़ेद वस्त्र के कपडे़ पर रंगबिरंगी रंगो से छापा के द्वारा वृजलीला एवम् व्रज के स्थल छापते है। यह कुमारी के भाव से धरई जाती है।

जल की साँजी - जल के ऊपर जल के अंदर रंगबिरंगी रंगोली पुरते है। यह श्रीयमुनाजी के भाव से धराई जाती है।