अंग्रेज इंजीनियर को हुए भगवान श्री राम और लक्ष्मण जी के दर्शन
बहुत समय पहले की बात है, एक बार भारत सरकार ने बाँध बनाने का काम इंग्लैंड की कम्पनी को दिया था। बाँध बनाने का काम सफलता पूर्वक लगभग तैयार हो चुका था, सिर्फ थोडा काम ही बाकी था। परीक्षण का दौर भी चल रहा था कि, एक रात अचानक ही मूसलाधार वर्षा होने लगी, जो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। इस कारण से बाँध का जल का स्तर बढना शुरु हो गया था और बाँध अभी पूरे तरह से मजबूत भी नहीं हुआ था। बाँध पर प्राकृतिक खतरा देखकर, अग्रेज इंजीनियर परेशान हो रहा था और सोच रहा था कि बाँध अगर टूट गया तो मुझे जेल हो जायेगी और मेरे देश की बदनामी होगी आदि आदि। रात हो गई बारिश रुक ही नहीं रही थी और बाँध से पानी रिसने लगा।
सभी मजदूर जो भारतीय थे बाँध के निकट बनी अपनी अस्थायी झोपड़ियों मे चले गये। चारो तरफ पानी ही पानी अंधेरा और कीचड़, अंग्रेज इंजीनियर बेचैनी से इधर – उधर अहसहाय भटक रहा था, जब कुछ समझ नहीं आया तो वह उन्हीं मजदूरों की झोपड़ियों की तरफ गया। वहां उसने देखा कि एक मजदूर परिवार तस्वीर के आगे दीया रखकर कुछ गा रहा हैं। अंग्रेज इंजीनियर ने उनसे उस समय की पारिस्थिति का जिक्र किया, और पूछा कि तुम इस तस्वीर के सामने बैठ कर क्या कर रहे हो।
उस मजदूर परिवार ने बताया कि वह सब अपने भगवान श्री राम सीता एवं लक्ष्मण जी की पूजा कर रहे हैं और आप भी इन्हीं राम को, राम राम राम, कहकर पुकारो यही आपकी मदद कर सकते हैं। अंग्रेज इंजीनियर ने कहा कि बाँध कभी भी टूट सकता है, मजदूरों ने कहा हम तो प्रार्थना कर हरे हैं, तुम भी कर लो, अब तो हमारे राम ही हमारी रक्षा करेंगे। अंग्रेज इंजीनियर लाचार सा हो मन में राम राम राम राम बोलता हुआ रक्षा करो मेरी लाज रख लो कहता, अपनी बरबादी निश्चित जानकर बाँध की दीवार के ऊपर यह सोच कर खडा हो गया, कि मरना तो है ही बाँध के साथ पानी मे डूबकर मर जाऊं तो कुछ लाज बच जायेगी।
इतने मे ही अंग्रेज इंजीनियर ने नीचे देखा कि बाँध की दिवार के पास दो बच्चे बांध की मरम्मत करने लगे हुये हैं। उसने उन बच्चो को अवाज लगाई कि वहां से बाहर आ जाओ नहीं तो मर जाओगे, परन्तु वह दोनों बालक मिट्टी का लेप लेकर बांध से पानी रिसने की जगह पर लगाते रहे। वह इंजीनियर दौड कर मजदूरों के पास पहुंचा और उसने वह तसवीर फिर से देखी और कहा यह दोनों धनुष धारी, धनुष लिये बाँध की दिवार पर मिट्टी लगाकर रिसते हुये पानी को रोक रहे हैं।
परन्तु , जब वहां मजदूर पहुचें तो उनको कोई बालक नजर नहीं आये, अंग्रेज इंजीनियर सभी को कहता रहा कि दोनों वहां पर धनुष लिये खडे हैं, देखो यहीं तो खडे हैं। परन्तु किसी को भी भगवान नजर नहीं आये, मजदूर समझ गये कि आज बाँध की रक्षा स्वयं भगवान ने ही आकर की है। धन्य है यह अंग्रेज इंजीनियर जिसको भगवान के दर्शन हुये, सब अंग्रेज इंजीनियर के पैरों में दंडवत हो कर प्रणाम करने लगे।
अंग्रेज इंजीनियर के दिमाग पर इस घटना का इतना प्रभाव पडा़ कि उसने अपने देश की शान शौकत भरी जिन्दगी का त्याग कर दिया और हिन्दु धर्म अपना कर संन्यासी बन गया और सन्यासी जीवन के सभी कर्तव्यों को निभाया। भगवान श्रीराम के चरणों में अपना पूरा जीवन अयोध्या मे रह कर सर्मपित कर दिया।
इस कथा का मर्म है कि भगवान को सच्चे भाव के साथ पुकारा जाये और मान लिया जाये कि जो भी करेंगे वह ही करेंगे, तो भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिये स्वयं चलकर आ जाते हैं।
आइयें आज की इस भयंकर महामारी के कठिन समय मे हम सब भी दिल से भाव के साथ अपने अपने इष्टदेव का जप कर जीवन सार्थक करें!
जय श्री राम जय श्री राम जय श्री राम