Aaj Shree Narad Ji Ke Bhakti Bhav Ke Bare Me Bhaav Rakhate Hai

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Aaj Shree Narad Ji Ke Bhakti Bhav Ke Bare Me Bhaav Rakhate Hai
Aaj Shree Narad Ji Ke Bhakti Bhav Ke Bare Me Bhaav Rakhate Hai

आज श्री नारद जी के भक्ति भाव के बारे मे भाव रखते है

अगर वेदों शास्त्रों में पड़े तब यह जानेंगे के श्री नारदजी श्री विष्णुजी के चौबीस अवतारों में एक अवतार है परंतु यह सब तो ” लोक आदि को शिक्षा आदि देने के लिए लिख दिया ताकि नारदजी अवतारों में गिने जाए और उनका महारसिकतत्व कोई ना जान पाए क्यूँकि श्री कृष्ण प्रेम अति गोपनीय है और श्री कृष्ण स्वयं इसे गुप्त रखना चाहते है। जिस जिस को यह अत्यंत गोपनीय महाप्रेम मिल जाता है वो स्वयं इसे गोपनीय कर लेता है। शिव से लेकर नारद तक सब के सब,

नारद का अर्थ है
नार अर्थ नारायण ( बुद्धि)
द अर्थ देने वाला
जो अपनी वीणा से श्री कृष्ण के नाम का प्रचार करे उसका नाम नारद है ओर जो श्री कृष्ण नाम की बुद्धि दे।

चलो हम अब काम की बात पर आते है, नारद का अंतर मन ” श्री राधा कृष्ण प्रेम रस से औतप्रौत है” स्वयं श्री कृष्ण के मन को नारद कहते है। कृष्ण का मन श्री नारदजी है, शास्त्रों में यह ब्रह्मा का मानसी पुत्र कहाते है परंतु यह सदा से ही श्री कृष्ण के “लीला परिकर में से एक है” जिन्हें ब्रज लीला का पूरा पूरा ज्ञान है जैसे शिवआदिको, नारद, श्री कृष्ण की लीला का पूर्ण रूपेन अस्वादन करते और कराते है। चलिए सबसे पुराना शास्त्र उठाते है “नारद पंचरात्र” इस शास्त्र को नारद जी ने पाँच रातों में “श्री राधा रानी की अनुपमय” लीला गायी थी, नारद पुराण उठा लीजिए वहाँ भी श्री राधा की महिमा गाए हुए है।

नारद सूत्र के चौरासी सूत्र में से एक सूत्र में कहा है। “यथा ब्रजगोपिकानाम” प्रेम की धरोहर और उच्चतम पराकाष्ठ नारद ने “गोपी अर्थात श्री राधा रानी को मानी” अब यह बताओ क्या किसी “देव ने श्री राधा रानी की महिमा गाने का साहस कर पाया है” नारद ही क्यूँ क्यूँकि वो स्वयं श्री कृष्ण का मन है और श्री कृष्ण के मन की स्थिति वो अछी तरह जानते है। तभी उन्होंने श्रीकृष्ण के मन में बसी श्री राधारानी की कृपा प्राप्त कर उनकी लीला का बखान किया है।

चलिए अब सुनिए नारद पंचरात्र में नारद जी कहते है “ओह राधिकाजी आप तो स्वयं श्री कृष्ण की शक्ति हो, इस पुराण में शिव जी ने पार्वती जी को श्री राधा रानी के ” एक हज़ार” नाम बताए है जो नारदजी ने अपने शास्त्र में लिखे है। नारद पंचरात्र में लिखते है “ओह श्री राधारानी आपके दर्शन मात्र से ही मेरा रोम रोम खिल रहा है मुझे अष्टसात्विक भावो का उद्रक हो रहे है। नारदपंचरात्र में नारद को श्री राधारानी का दर्शन हुआ और तब उन्होंने श्रीराधारानी की लीला का बखान किया। नारद जी ना यहाँ तक अपने पंचरात्र में “श्री राधा माधव के रास का दर्शन भी लिखा है” जब बरसाने में कीर्ति के यहाँ श्री कृष्ण की लादिनी शक्ति श्री राधारानी प्रकट भायी तब श्री कृष्ण के मन अर्थात नारद स्वयं वहाँ पहुँच गए और उनके गुनो की विरदावालि अश्रुकम्प सहित श्री कीर्ति माँ को सुनायी।

नारदपंचरात्र में आपने सुना होगा के “नारद को ब्रह्मा ने शाप दिया था के तू “दासी पुत्र” हो जा, परंतु जानते है क्यूँ , क्यूँकि “पूर्व जनम में नारदजी का नाम” उपब्रह्मन नाम का गंधर्व था एक बार ब्रह्मा की सभा में उन्हें बुलाया गया के आओ उपब्रह्मण गंधर्व यहाँ कुछ गाओ और गा के ब्रह्मा को प्रसन्न करो जब उपब्रह्मण ने अपनी वीणा उठायी तब उठाते ही वो राग गाने लगे परन्तु तभी उन्हें “श्री राधारानी के भाव विभोर संगीत की स्मृति” हो आयी बस उसी भाव विभोर होकर अश्रुकम्प में उनका स्वरभंग हो गया जिससे ब्रह्मा ने उन्हें शाप दे दिया के तू दासी पुत्र हो जा। बस दासी पुत्र होकर उन्होंने श्री कृष्ण का भजन किया और कर कर अगले जनम में श्री कृष्ण का पार्षद बन श्री राधा माधव की लीला का दर्शन करने के अधिकार मिल गया। नारद, श्री कृष्ण का दिव्य मन है जो कार्य श्रीकृष्ण करना चाहते है वो कार्य श्री नारद द्वारा कराते है।

नारद ने श्री राधारानी की महिमा गा उन्हें अत्यंत प्रसन्न किया और फिर उनकी कृपा पा “गोवर्धन में गोपी कुंड में स्नान कर ” नारदी गोपी” कहलाये और उनका रास दर्शन किया और रास किया भी आज वो कुंड” नारद कुंड नाम से है। जब व्यासजी अत्यंत निराश थे तब नारद ने उन्हें श्री ” कृष्ण” लीला पर अपना शास्त्र लिखिए परंतु श्री राधारानी की महिमा को गुप्त रखा” अरे कहाँ तक वर्णन करे इतना जान लीजिए। नारदजी श्री राधा माधव के महारसिको में गिने जाते है. अपने ही भक्ति सूत्र में ” अपने को उच्चतम भक्त ना कह ” श्री राधा रानी आदि गोपियों को अति उच्चतम बताया है” यहाँ तक के ग़ौर लीला में भी ” नारद” श्री वास पंडित के रूप में प्रकट भाए थे जिनके आँगन में श्री राधामाधव भाव विग्रह ग़ौर नृत्य करते थे।

सोचिए जब ग़ौर लीला में नारद आ सकते है वो भी ग़ौर के अंतरंग परिकर रूप में तब सोचिए कितने बड़े महारसिक सम्राट है नारद जी ब्रज में तो इनको वास मिला हुआ है। ऐसे परम प्रिय श्री राधा प्रेम कृपा प्राप्त श्री नारदजी को हम कोटि कोटि प्रणाम करते है। और उनसे ” श्री राधामाधव” के दुर्लभतम प्रेम की याचना करते है।

जय राधे जय ग़ौर श्री राधा।
बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय।
जय जय श्री राधे।
श्री राधा- कृष्ण की कृपा से आपका दिन मंगलमय हो।
श्री कृष्ण शरणम ममः

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