कलयुग में बिहारी जी का साक्षात्कार

बिहारी जी का एक पंजाब का पागल था जो हर पल हर क्षण बिहारी जी के नाम में मस्त रहता था यु तो उसके पास बिहारी जी का दिया सब कुछ था बस एक छोटी सी इच्छा थी एक औलाद की शादी के दस साल बीत गए पर औलाद की इच्छा पुरी ना हुई लोग उसे तरहा तरहा के तरिके बताते पर वो हर एक से ये ही कहता जब बिहारी जी चाहेंगे तब ही होगा

एक दिन वो अपने पुरे परिवार के साथ बिहारी जी के दर्शन को गया बिहारी जी को खुब लाड लडाया खुब प्यार जताया और आंखों ही आंखों मे अपनी इच्छा बता दी वो परिवार जैसे ही शयन आरती के बाद बाहर आया पर उस पागल का दिल बिहारी जी की चौखट पे रात बिताने को था सारा परिवार अपने आश्रम चला गया और वो पागल बिहारी जी की चौखट को लाड लडाने लगा तभी उसने एक बच्चे की रोने की आवाज सुनी वो खड़ा होकर इधर उधर भागा उसने देखा बिहारी जी के पयाऊ पे एक बच्चा पीतामबर से लिपटा पड़ा है उसने उस बच्चे को उठाया और उसके माता पिता को ढुढने लगा काफी देर के बाद भी कोई उस बच्चे का अपना ना मिला तभी एक गोस्वामी ने उसको आवाज लगाई और उसे अपने सपने की सारी बात बताई जिसे सुनकर वो पागल हैरान रह गया

गोस्वामी बोले प्यारे आज बिहारी जी पहली बार मेरे सपने मे आऐ और बोले मेरा एक पागल मेरी चौखट पे एक बच्चे को लेकर भाग दौड़ कर रहा है उसे जाकर कहो वो बच्चा मैंने ही उसे दिया है वो उसके लिए ही है उसे हमेशा अपने साथ रखे

बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय।
जय जय श्री राधे।
श्री राधा- कृष्ण की कृपा से आपका दिन मंगलमय हो।
श्री कृष्ण शरणम ममः